नई दिल्ली । कर्नाटक हाईकोर्ट ने स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पहनने पर रोक के खिलाफ मुस्लिम छात्राओं की याचिका खारिज कर दी है। हाईकोर्ट ने कहा है कि हिजाब पहनना इस्लाम में अनिवार्य नहीं है। मुस्लिम नेता इस फैसले से निराश नजर आ रहे हैं।मंगलवार को कर्नाटक हाईकोर्ट ने स्कूल और कॉलेजों में हिजाब पहनने पर अपना फैसला सुना दिया। कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हिजाब इस्लाम के अनिवार्य धार्मिक व्यवहार का हिस्सा नहीं है और इस तरह संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं है। साथ ही हाईकोर्ट ने कहा छात्र स्कूल यूनिफॉर्म पहनने से मना नहीं कर सकते हैं और स्कूल यूनिफॉर्म पहनने का नियम वाजिब पाबंदी है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकार के आदेश को चुनौती का कोई आधार नहीं है। स्कूल और कॉलेजों में हिजाब पर बैन का मामला पहले हाईकोर्ट की सिंगल बेंच सुन रही थी, जिसके बाद मामले को पूर्ण बेंच को भेज दिया गया था। हाईकोर्ट की पूर्ण बेंच ने कहा राज्य सरकार द्वारा स्कूल यूनिफॉर्म का तय किया जाना अनुच्छेद 25 के तहत छात्रों के अधिकारों पर उचित प्रतिबंध है और इस तरह से 5 फरवरी को कर्नाटक सरकार की ओर से जारी सरकारी आदेश उनके अधिकारों का उल्लंघन नहीं है। इसके बाद हाईकोर्ट ने उन याचिकाओं को खारिज कर दिया जिसमें सरकारी पीयू कॉलेज में मुस्लिम छात्राओं को हिजाब के साथ कॉलेज में दाखिल करने से इनकार करने की कार्रवाई को चुनौती दी गई थी। “हिजाब इस्लाम का हिस्सा नहीं” फैसले के बाद कर्नाटक के महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने कहा, “व्यक्तिगत पसंद पर संस्थागत अनुशासन प्राथमिक होता है। यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 25 की व्याख्या में एक बदलाव का प्रतीक है” दूसरी ओर कर्नाटक के शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा, “मुझे खुशी है कि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सरकार के फैसले को बरकरार रखा है। मैं अदालत में गई लड़कियों से अनुरोध करता हूं कि वे फैसले का पालन करें, शिक्षा किसी भी अन्य चीजों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है” केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने पत्रकारों से कहा, “मैं कोर्ट के फैसले का स्वागत करता हूं। मेरी सभी से अपील है कि राज्य और देश को आगे बढ़ाएं। सभी को हाईकोर्ट के आदेश को मानकर शांति बनाए रखनी है। छात्रों का मूल कार्य पढ़ाई करना है। इसलिए इन सब को छोड़कर उन्हें पढ़ना चाहिए और एक होना चाहिए” इससे पहले 25 फरवरी को चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी, जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी ने इस मामले पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।