संधिस्थल और बिखराव
केन्द्रित है एक ही जगह
किन्तु! तय बिखराव भी
प्रेम की पराकाष्ठा से
संधि की और लौट आता।
मौन प्रेम की पीड़ा
प्रभावित होती नियती
व्यंजना नहीं सरल
लक्षणा होती प्रकट
फिर अभिधा …..।
सरल न सहज प्रेम
प्रकट कहाँ कर पाते
रूप लेती है भावनाएँ
कठोर अग्नि परीक्षा
लेती नियती हर बार।
प्रेम कोश के बीज
जीवन निखारते …
तपन सहिष्णु पाते
रूप तेरा रूप आदि
सत्य का शिव सुंदर।
ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राज.