मँहगाई की मार से , मध्य वर्ग लाचार ।
दिन दूनी यह बढ रही , मूक बनी सरकार ।।
मूक बनीं सरकार, जुटाती है संसाधन ।
निम्न वर्ग को प्राप्त, हुआ है बढ़िया राशन ।
मध्य वर्ग पर आज , निराशा बेहद छाई ।
सुरसा के मुख भाँति , बढ़ी है यह मँहगाई ।।
___
जीवन दुर्लभ सा लगे , जनता करे विचार ।
जनमानस पर पड़ रही , मँहगाई की मार ।।
मँहगाई की मार , बहुत हैं महँगी पुस्तक।
और साथ में शुल्क , रक्त पीता है भरसक ।।
शिक्षा का व्यापार, प्रताड़ित करता जन मन ।
मात-पिता लाचार , चलाएँ कैसे जीवन ।।
—-
मँहगाई की आग ने लीले हैं घर-बार ।
जीवन दुर्लभ हो गया, जनता है लाचार ।।
जनता है लाचार , चलाएँ कैसे जीवन ।
खर्चे खड़े अनेक , पास में थोड़ा है धन ।।
देख हाथ में वित्त , निराशा उर में छाई ।
जीना करे मुहाल , निगोड़ी यह मँहगाई ।।
🙏🏻🙏🏻
— अर्चना तिवारी अभिलाषा