कटु सत्य 

1

साफ किसी का मन नहीं, मधुर नहीं है बात ।

दोषारोपण में लगे, सोचें बस प्रतिघात ॥

2

काम दूसरों का कभी, नहीं सराहें लोग ।

जीवन जीते दंभ में, लगा लोभ का रोग ॥

3

इतरा कर गीदड़ चला, पहन शेर की खाल।

तुच्छ ज्ञान ले जग मुदित, चले कुटिल ही चाल।। 

4

अहंकार है हृदय में, रसना पर है झूठ। 

राह बदलिए आज ही, राम न जाये रूठ।। 

5

तुलना जग की रीति है, हार-जीत है राह। 

बिना डिगे जो हम चले, पूरी हो हर चाह।। 

अर्चना शुक्ला 

प्रयागराज, उत्तर प्रदेश