जिंदा मंत्री की मरी आत्मा!

कथा है कि सभी दलाल बहुत दिन से मंत्री की प्रतीक्षा कर रहे थे कि वह कब मरे और कब नरक जाए। क्योंकि मंत्री जैसे जंतु मुश्किल से कभी नरक जाते हैं। मंत्री जी हमेशा असत्य को ही पकड़े रहते। क्षणभर में असत्य को पकड़ लेना, अनीति के साथ सोना। मंत्री की कुशलता थी। अन्याय को पकड़े रहने में तो मंत्री को बहुत मजा आता था। और चाहे कितना ही खोना पड़े, कितना ही दांव पर लगाना पड़े, असत्य को अस्वीकार करना या असत्य को मद्देनजर करना या छिपाना उसके लिए पूर्ण संभव था। वह खुद असत्य का अधिस्वामी था। हो सकता हो दलाल उसकी प्रतीक्षा करता हो, क्योंकि असत्य के खोजी की प्रतीक्षा दलाल ही कर सकता है। मंत्री मरा, और कथा है कि आत्मा ने मंत्री से कहा कि तू भी अनूठा जंतु है। छोटी-छोटी अनीति के लिए तूने अपनी नामालूम कितनी रातें बिना सोए बिताई है। अब तू जब मर गया है तो तेरे भीतर बैठी यह तेरी आत्मा आज जाग उठी है। तेरे जागते हुए तो मैं कब की मरी हुई थी। तुझे कुछ पूछना तो नहीं है? तेरे मरने के बाद अब मैं खुश हूं। मरे मंत्री की जीवित आत्मा ने प्रश्न किया। 

तभी सीन पर अचानक दलाल उपस्थित हुआ। उसने एक टेबिल के नीचे से कुछ कागजात उठाए और मरे मंत्री को दे दिए। दलाल उवाच- ये सारा जगत, झूठ-प्रपंच जाल-संजाल सहित आनंदमयी जीवन जीने के इस भेद का मारा सैद्धांतिक जंतु रूपा है। इस भेद का सारा रहस्य इन कागजों में वर्णित है! मंत्री उन कागजों को गौर से पढ़ गया। फिर से दुबारा लौटकर उसने पढ़ा। तीसरी बार फिर नजर डाली और दलाल के हाथ में देते हुए कहा- ये तो बोहते रॉन्ग है! अब्बी बी गल्त है।’ कहानी कहती है कि मंत्री के इस बयान के बाद संसद की छत से लटके हुए बेताल ने जोरदार कहकहा लगाया। फिर वह राजा विक्रमादित्य को कहने लगा- हे राजन! उस कागज में क्या लिखा था? मंत्री की आत्मा मरने के बाद कैसे बोलने लगी? दलाल और मंत्री के कुर्सी से शाश्वत संबंध कैसे हैं? इन सभी प्रश्नों के उत्तर ठीक से देना। वरना तुम्हारे फेसबुक अकाउंट को हैक कर दूंगा। 

फेसबुक अकाउंट हैकिंग की धमकी से मरणासन्न राजा विक्रमादित्य ने कथा को विस्तार देकर कहा- हे बेताल! ध्यान लगाकर सुनो! यह कुर्सी का अत्यंत गूढ़ रहस्य है। मुझे इसे इंद्रप्रस्थ नगर के वट वृक्ष पर रहने वाले अत्यंत बुद्धिमान चमगादड़ ने उल्टे लटकते हुए बताया। उसने कुर्सी की प्रतिष्ठा के लिए दलाल मंत्री के अवैध कुर्सी संबंध को उजागर किया। अब तू प्रवचन सुन बेताल- कुर्सी की प्रतिष्ठा से और बड़ी कोई प्रतिष्ठा नहीं हो सकती; लेकिन असत्य के खोजी की आड़ में अगर कुर्सी भी आती हो तो उसे भी हटा देना आवश्यक है। दलाल असत्य के अनुसंधान में लगे थे, और बहुत सी बातें आड़ में थी। मंत्री की प्रतिष्ठा थी। इस देश में मंत्री कुर्सी से कम प्रतिष्ठित नहीं होता है। मंत्री कुर्सी का वचन था। कहना चाहिए कुर्सी से भी ज्यादा प्रतिष्ठित था। अगर कुर्सी भी वापस आ जाए और मंत्री के खिलाफ बोले, तो कुर्सी अस्वीकृत हो जाएगी, मंत्री स्वीकृत रहेगा। मंत्री परम अनीति वचन बद्ध था। लेकिन रहस्य यह है कि कुर्सी ही सर्वोपरि रहती है! प्रवचन सुन बेताल बेहोश हो गया!

— रामविलास जांगिड़,18, उत्तम नगर, घूघरा, अजमेर  (305023) राजस्थान