लफ़्ज़ चुप थे और में अंदर से हँस रहा था।
मेरे रिश्तेदार सभी मौजूद थे में ही नही था।
मेरे सामने खड़ी भीड़ मेरे लिए रो रही थी
और में आराम से ज़मीन पर सो रहा था।
आँखे मेरी बंध थी हमेशां हमेंशा के लिए
और में सोते हुए भी निंद में जाग रहा था।
देख रहा था कोई मेरेलिए बहुत दुःखी था
तो कोई मेरी चुगली उड़ाने में मशगूल था।
मुझे तो बस आज़ाद होना था इस दुनियाँ से
इसलिए में बड़ी ख़ामोशी से देख रहा था।
आग़ पुकार रही थी और में था की अपने
शरीर को बस छोड़ना नही चाहता था।
में अपना दिल अपने साथ ले जाना चाहता
था इसलिए कफ़न में भी जेब ढूंढ रहा था।
में कुछ यादें छोड़ना चाहता था लेकिन तब
तक अलविदा कहने का वक़्त आ गया था।
लकड़ियां मुझे महसूस कर रही थी में कुछ
बात करू इससे पहले तो राख हो चुका था।
नीक राजपूत
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