चल सखी कहीं घूम कर आते हैं
तितली बन अपने पंखों को फैलाते हैं
चूल्हा चौका छोड़ कुछ गप्पे लड़ाते हैं
चल सखी कहीं घूम कर आते हैं..
ऑफिस, टिफिन, झाड़ू पोछा
सब से थोड़ा मुक्ति पाते हैं
चल सखी कहीं घूम कर आते हैं..
अपनी परेशानियों को छोड़
खुशियों की पतंग उड़ाते हैं.
लॉन्ग ड्राइव के साथ
फुल साउंड में गाना गाते हैं..
चल सखी कहीं घूम कर आते हैं..
साड़ी को रख ,जींस में कमर मटकाते हैं …
कुछ शैतानियां कर फिर बच्चे बन जाते हैं..
चल सखी कहीं घूम कर आते हैं..
भागती दौड़ती जिंदगी में
कुछ पल अपने लिए चुराते हैं..
चल सखी कहीं घूम कर आते हैं
प्रियंका जोशी
जावरा , जिला – रतलाम