अनमोल रिश्ता 

सृजन का यह ढंग निराला,

ममता,वात्सल्य से भरा पिटारा।

दे ना सका कोई,इसका   मोल,

माँ का रिश्ता   बड़ा अनमोल।

जननी बनी वो,सौ कष्ट उठाए ,

मौत के मुख से बाहर आये ।

मातृत्व-सुख  को पाकर  वो,

खुशी से माँ  फूले  ना समाए।

ले गोद में,हर दुख वो भूली,

रंगीन   ख्वाबों  में  झुली।

खुशी का ना रहा ठिकाना,

मिल गया हो कोई खजाना।

अमृत,उर-पय उसे पिलाए,

सींचती रही,छाती से लगाये।

चार पहर उसे,चिंता सताये,

उसको कोई आंच ना आये।

संस्कार की सीख  है  देती,

और देती रहती है  दुआएँ,

सीने  में  कितने दर्द छुपाये,

हर लेती है ,उसकी बलाएँ।

अपना वह,वात्सल्य  लुटाती,

देख संतति की छवि वो प्यारी।

उसकी   आँखों   में     मानो,

सिमट गई है  दुनिया  सारी ।

एक मंजर वो भी है  दिखता,

लगता है जो बड़ा  सुहाना।

अपने बच्चों की खातिर जो,

चिड़ियाँ भी  चुगती है दाना।

प्रकृति का ये खेल  निराला,

लगता है कितना ही प्यारा।

ये दिखलाता,रिश्ते का मोल,

मां का रिश्ता बड़ा अनमोल।

डॉ  कुमारी कुन्दन

पटना (बिहार)