सोचती है गांधारी…

सोचती है गांधारी

शकुनि कैसा 

बन्धु भाई ।।

जल रहा है

हस्तिनापुर

आग इसने ही लगाई।।

मैं सशंकित थी

तभी से ,शकुनि जब से

साथ आया।

डस गया है

कुल हमारा

नाग विषधर साथ आया।

द्रोण ने आंखें झुकाई

भीष्म बन बैठे लुगाई।।

पूछती है गांधारी

शकुनि कैसा

बन्धु भाई।।

एक सौ बेटे हमारे

सभी रण में

काम आए।

एक काका विदुर थे

जो बात

ढंग से कह न पाए

विदुर दासी पुत्र

किसने कहो

ये तोहमत    लगाई।।

रो रही  है गांधारी

शकुनि कैसा

मेरा भाई।।

काश पति धृतराष्ट्र मेरे

शकुनि को

आने न देते।

भीष्म चौसर पास

की बिष बेल

फैलाने न देते।

शकुनि ने कुल की

हमारी ईंट से 

इटें बजाई ।।

पूछती है गांधारी

शकुनि तू

कैसा है भाई।।

# शिवचरण चौहान

कानपुर