अंतहीन सफर 

मिले फुर्सत तो आना घर पे  

रखा है सारे वह लम्हे संजो के 

जी लेंगे पर फिर वही पुराना दौर 

कोयल की कूक शाखों पर लगी बौर| 

एहसासों को फिर से लगाकर गले 

आओ ना फिर से एक बार  जी ले 

आना वही पीली साड़ी पहन के 

बंधी है तुमसे अब भी  कुछ गिरहें| 

चलो मिलकर खोले वह सारी गांठे  

दूर करे पुरानी वो अनसुलझी बातें 

गलतफहमियों  का हुआ था ऐसा असर 

जुदा हो गए थे हमदोनों के  डगर| 

दूर करे सारे शिकवे गिले 

चलो फिर एक बार ऐसे मिले 

रह न जाए अब कोई भी कसर 

शुरू करें जीवन का अंत हीन सफर| 

सविता सिंह मीरा 

झारखंड जमशेदपुर