भोपाल । जैन धर्म में विश्व प्रसिद्ध महोत्सव पंचकल्याणक महोत्सव श्री पारसनाथ दिगंबर जैन मंदिर अशोका गार्डन में मज्जिनेंद्र चौबीसी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव एवं विश्व शांति महायज्ञ का शुभारंभ आज रविवार को मुख्य पात्र चयन प्रक्रिया से शुरू हुई।
अत्यंत धूमधाम एवं हर्ष उल्लास के माहौल में पंचकल्याणक का आगाज यहां हो चुका है।युग शिरोमणि आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महाराज , आचार्य भगवन श्री आर्जव सागर जी महाराज एवं निर्यापक श्रमण मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी महाराज के आशीर्वाद से आचार्य श्री के तीन अनमोल रत्न परम प्रभावक शिष्य परम पूज्य मुनि श्री 108 उत्तम सागरजी ,परम पूज्य मुनि श्री 108 कुन्थु सागर जी , परम पूज्य मुनि श्री 108 पुराण सागर जी के सानिध्य में आयोजित हुआ कार्यक्रम की शुरुआत आचार्य भगवान के सामने दीप प्रज्वलन के साथ हुआ दीप प्रज्वलन कमेटी के पदाधिकारियों द्वारा करा गया। दीप प्रज्वलन के पश्चात मंगलाचरण पाठशाला की बालिका रिया जैन के द्वारा किया गया।प्रातः 6:00 बजे अभिषेक एवं शांतिधारा जिसके पश्चात आचार्य श्री की पूजन श्रद्धालुओं द्वारा संगीतमय भक्ति नाथ के साथ की गई। प्रातः 7:00 बजे मुख्य पात्रों का चयन वोलियों के माध्यम से प्रारंभ हुआ जिसमें सोधर्म इंद्र – १६ कलश श्री परम चंद जैन सुल्तानपुर परिवार ,कुबेर – ५ कलश श्री रतन चंद जैन ,महायज्ञ नायक – ६ कलश श्री पवन जैन निपानिया ,ध्वजारोहण कर्ता – २ कलश २ श्रीफल श्री विपिन जैन तड़ा ,विधि नायक – ७ कलश ७ श्री फल श्रीमती मीना चौधरी रितेश चौधरी इन परिवारों को मुख्य पात्र बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। विधानाचार्य स्पष्ट वक्ता ब्रह्मचारी धीरज भैया (राहतगढ़), ब्रह्मचारी — नितिन भैया के निर्देशन में मज्जिनेंद्र चौबीसी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव की धार्मिक क्रियाएं विधि विधान से की गई।। प्रवक्ता अंकित जैन ने बताया इस पंचकल्याणक में सबसे अनोखी बात यह है कि भोपाल के इतिहास में 17 साल बाद दोबारा स्वर्णिम अक्षरों में सकल दिगंबर जैन समाज अशोका गार्डन अपना नाम दर्ज करने वाला है विश्व प्रसिद्ध जैन धर्म का महोत्सव – पंचकल्याणक महोत्सव होने जा रहे हैं ,दिनांक 6 जून से 11 जून तक। सभी मुख्य चयनित पात्रों का समिति के पदाधिकारियों द्वारा सम्मान किए गए एवं बधाई दी गई। समिति के पदाधिकारियों में सुनील जैन, विनोद पड़िया, सतीश सहारा, आकाश चक्रवर्ती, आशीष ,सुमित, आदि पदाधिकारी उपलब्ध थे
चयनित पात्रों के सम्मान के बाद मुनि श्री के आशीष वचन हुए
आशीष वचनों से कहा कि जितनी जितनीशुभ भावना में वृद्धि होगी,समझ लेना उतनी उतनी ही हम धर्म की असली पूंजी कमा रहे हैं ।यदि धर्म की पूंजी नहीं बढ़ाई तो फिर यही जीवन एक दिन कष्ट व मुसीबतों का कारण बनेगा क्योकि अशुभ भावना हो तो पाप संचय का माध्यम भी यही है ।
मुनि श्री ने आगे बताते हुए कहा कि भावना 12 प्रकार की होती है लेकिन हम यदि इतना भी विवेक रखते हुए यह सुनिश्चित कर लेंगे कि व्यर्थ में ही किसी का बुरा नहीं सोचेंगे,फिर बुरा करना तो संभव ही नहीं होगा ।हकीकत भी यह है कि आदमी जब अपनी दूषित भावना से भी प्रतिदिन नए नए अशुभ कर्म का संचय कर लेता है और जब कभी वे उदय में आते हैं,फिर रोता है ।जब हंसते हंसते,दूसरों का मखौल उड़ाते,राग द्वेष से भरे होकर,अपनी दूषित भावना के द्वारा अशुभ कर्म का गोदाम बढ़ता ही जा रहा है,फिर जीवन में आत्म सुख कभी संभव नहीं होता ।
आशीष वचन में आगे बताते हुए कहा कि सुख की परिभाषा अपनी निर्मल भावना में छुपी हुई है और निर्मल भावना से ही कर्म बंधन ढीले पड़ने लगते हैं कर्मों का उत्पादन अपनी अपनी भावना के अनुकूल ही होता है । इसलिए जैसी भावना होंगे वैसे ही परिणाम होगे ।