गणिकाएँ बेची नहीं जातीं सिर्फ़ जिस्म से ,
वो बेची जाती हैं तुम्हारी गालियों में,
वो रोज बेची जाती हैं तुम्हारे ठहाकों में…
गणिकाएँ टूटती नहीं सिर्फ़ शरीर से ,
वो रोज तोड़ी जाती हैं रूह में ,
रोज टूटती हैं सपनों में …
गणिकाएँ लज्जित नहीं होतीं ,
हाँ वो लज्जित नहीं होतीं ,
क्योंकि बड़ी बेशर्मी ओढ़ रखी है तुमने आँखों में…
गणिकाएँ छली नहीं जाती सिर्फ़ सौदों में ,
छली गई होती हैं बरसों पहले ,
कभी प्रेम में – कभी विश्वास में …
गणिकाएँ बेची नहीं जातीं सिर्फ़ जिस्म से ,
वो बेची जाती हैं तुम्हारी गालियों में,
वो रोज बेची जाती हैं तुम्हारे ठहाकों में…
शिवांगी शर्मा
फ़रीदाबाद ( हरियाणा )