*काशी के घाट और गंगा*

दशाश्वमेध घाट पर

भोर में भोलेबाबा की जयकार के साथ

निकलता है दिन काशी में

यात्रियों की हुज़ूम

रिमझिम तेज़ बारिश

इधर से उधर

उधर से इधर आते भगवाधारी सन्यासी

गंगा की सैर से जीविका जोड़ता माझी

शिव वेष में बच्चे

पिंडदान और पूजा के लिए पूछते पंडित

झुंड में स्नान करते यात्री

दूसरी ओर गंगा में दीपदान करती स्त्रियां

नाव में बैठ गंगा के घाट निहारते पर्यटक

गश्त लगाते पुलिसवाले

सफाई करते मज़दूर

घाट पर टीका लगाते पंडे

दूर क्षितिज से झांक बाहर आता सूरज

पास के पेड़ से उड़कर नाव पर बैठा कौवा

मंदिरों के एक शिखर से दूसरे शिखर उड़ते कबूतर

घाट की सीढ़ियों पर सोये कुत्ते

जोर जोर से बतियाता वृद्ध

नाव की सैर का मोलभाव करते कुछ शहरी

बूढ़े की हाथ थामे सीढियां उतारती देहात की अम्मा

घूंघट काढ़े नये वस्त्रों से लदी नव वधू

धीरे धीरे फैलता उजाला

थमती बारिश

जीवन की चपलता बताती हर चेष्टा

समय के साथ पल पल दौड़ती ज़िंदगी

नए अर्थ देती नए पर्याय बनाती

गंगा सी निरंतर प्रवाहमयी

बेरोक-टोक हृदयस्पंदनों सी सक्रिय ज़िंदगी

काशी में घाटों पर

*मणिकर्णिका घाट*  

मणिकर्णिका घाट पर

लक्कड़ों के ढेर से लदी नावें

ऊपर ही ऊपर उठता धुआं

सांचों में चिताओं पर दहन होती लाशें

कतार में लाशें और पास खड़े लोग

मणिकर्णिका घाट का धुआं

बगल में बहती गंगा

जीवन-मृत्यु के सच को बताती

वैराग्य को जन्मते घाट और नदी

नज़र नहीं हट पाती राख होती लाशों पर से

बार बार देखने का मन करता है

कलकल करती जीवधारा गंगा को

जीवन सत्य को पलों  में बताते दृश्य

तभी काशी में आते ही घर करती है

जीवन चेष्टाओं के प्रति तटस्थता

बनती है अजीब सी मनःस्थिति

जो न सांसारिक है न आध्यात्मिक

होती है मध्यस्थिति लटकते त्रिशंकु सी

महादेव सा निराडम्बर और सादा

अनायास हो जाता है भोले का चेला

*हरिश्चन्द्र घाट*

हरिश्चन्द्र घाट पर

जलते शव उठता धुंआ

हरिश्चन्द्र के डोम होने की कथा

पूरे मनोयोग से सुनाता माझी

सत्य और कपट के संघर्ष को बताता

शव के पास खड़े राम नाम के नारे लगाते बंधुगण

घाट के पास से गुजरते हुए आंखों के सामने

लोहिताश्व, तारामती और हरिश्चन्द्र

उनके सत्य के संघर्ष के दृश्य

धीरे धीरे घाट नज़र से ओझल होता है

गंगा मौनी बाबा सी बहती  रहती है

*डॉ टी महादेव राव*

विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश)