ये जो स्याह घेरे हैं

काजल की कोठरी में छिपा दे इन्हें

तू निकल के आ

कि रास्ते खुदबखुद बन जाएंगे

तू चल जैसे चीरती हो

बिजलियाँ पहाड़ को

तू डूब जा दरियाओं में

और लौट फिर मोती निकाल के

ये तय है कि तुमपर छीटें उठेंगे

अट्टाहास और कहकहे लगेंगे

मग़र तू देखना एक खीझ भी निकलेगी वहीं से

जब तू बिना डरे बिना रुके चलती रहेगी

तू मत पलट,कोई प्रतिक्रिया न दे

जो तेरे हाथ है बस उसी पर ध्यान दे

तू याद रख आसमां भी झुका करते हैं

जो रुक गए तो बादल भी मरा करते हैं

तू आँख पोछ,आँसू है कुआँ नही

एक दिन सूख जाने है

कर हौसला और याद रख

तुझे ख़ुद को ढूढ़ लाना है

अब कि चलना रस्तों पर

याद रखना टूट जाना नही है

मंजिले मिलकर रहेंगी जो है भरोसा

अब रुक जाना नही है….

–नीतू सिंह

प्रयागराज उत्तरप्रदेश