तकती हूं राह ऐसे कि इंतज़ार किसी ने किया न हो..
नहीं जानती कि कैसे “मिलेंगे”, ये धरती और आसमां ,
तुम मिलना कुछ ऐसे..कि अब तक कोई मिला न हो !!
हां,रह ही जाता है हर बार, कुछ न कुछ “छूटा हुआ सा”,
अबकी लिखना कुछ ऐसे, मन में कुछ भी छिपा न हो !!
बहुधा कर लेती हूं महसूस हवाओं में घुले तुम्हारे वो शब्द,
अबकी कहना कुछ ऐसा जो तुमने अब तक कहा न हो !!
अक्सर खत लिखकर बयां कर देते हैं लोग सब जज़्बात,
सुनो लिखना ख़त ऐसा, कि कभी किसी ने लिखा न हो !!
हां, दिया होगा ज़रूर किसी ने, किसी को अपना सर्वस्व,
तुम “देना” कुछ ऐसा..कि अब तक किसी ने दिया न हो !!
रूठ ही जाती हूं अक्सर, मैं किसी एक अपने से बार-बार,
हां, मना लेना तुम ऐसे..कि बचे मन में कोई गिला न हो !!
क्यों करती हूं मन की बातें अक्सर सूरजमुखियों से ही मैं,
शायद तकती हूं राह ऐसे कि इंतज़ार किसी ने किया न हो !!
नमिता गुप्ता “मनसी”मेरठ, उत्तर प्रदेश