ढूंढ रही थी मेरा नाम, तेरी हथेली की लकीरों में
मिला नही मुझको वो, तेरी हथेली की लकीरों में ।
तेरी सुरमई अंखियों में, अक्स मुझे मेरा दिखता है
फिर क्यों दिखती नही, मैं! तेरी हथेली की लकीरों में ?
आँख से आँसू छलके तो भी, मिलन के पल आते नहीं
क्या विरह ही लिखा है मेरा, तेरी हथेली की लकीरों में ?
रखना चाहते हो तुम, मुझको ! हर पल तुम अपने करीब
किस डर से नही बसाते मुझको, तेरी हथेली की लकीरों में ?
जैसे चंपा पाना चाहती है, भ्रमर के होठों का मीठा रस
चाहे ‘ मन बंजारा ‘ छपना , तेरी हथेली की लकीरों में ?
रूपल उपाध्याय ‘ मन बंजारा ‘