शोभा बरनी न जाई जनक नगरी l
जनक नगर रमणीय सुहावन ,
बहहिं सरित जल अमिय लजावन ,
बन बाटिका सुहाई l
शोभा बरनी न जाई……………
कूजत पक्षि मधुर धुनि करहीं ,
होइ मदमस्त भँवर गुंजरहीं ,
त्रिविध बयार बहाई l
शोभा बरनी न जाई……………
चारु बजारु विचित्र बनाई ,
बैठे बनिक बहु भाँति सजाई ,
सकल वस्तु बिन मोल बिकाई l
शोभा बरनी न जाई……………
चौहट गली सब सुगन्ध सिंचाई ,
घर आँगन गलि चौक पुराई ,
मंगल कलश मनिदीप सजाई l
शोभा बरनी न जाई……………
पुर नर नारि सुभग सुचि साईं ,
घर सबहीं के अति सुखदाई ,
जनु मनोज निज हाथ सजाई l
शोभा बरनी न जाई……………
जहाँ बसत जग जननि जानकी ,
प्रिया राम करुणानिधान की ,
बरनत छवि शारद सकुचाई l
शोभा बरनी न जाई……………
अमिय = अमृत , चौहट = चौराहा
सुभग = सुन्दर , सुचि = पवित्र
साईं = ईश्वर , मनोज = कामदेव
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
आरा, भोजपुर, बिहार
मो.नं. 8210058213