सावन के झूले

भीगा भीगा तन बारिश से, सावन के  लग गये  झूले

सारी सहेलियाँ मारे ताना, सजन  कहां जाकर भूले           

फिर आया है रे  सावन, रिमझिम रिमझिम बूंदे लेकर

क्या मिलता है तुझको पिया बिन, दर्द हिया का देकर

हरी भरी धरती सज कर मानों दुल्हन सा श्रृंगार किये

महक उठे हैं बाग बगीचे कोयल कुहु कुहु पुकार उठे

ठंडी ठंडी ये शीतल हवायें, मेरे मन में आग लगाती हैं

तेरा कांधा, वह तेरी धड़कन, मुझको बहुत सताती हैं

नये नये आ गये पात पेड़ों पर,प्रकृति भी मुस्कराती है

सब कोई पास मेरे तेरे न होने का अहसास दिलाती है

जाकर बादल पिया से कहना,हाल तेरा वहां कैसा है

कौन झुलाये झूले अब तो कोई तेरे इंतजार में बैठा है

राधा के बिन श्याम अधूरे, श्याम बिना राधा अधूरी है

ये वारिश,सावन के झूंले,कैसी तन्हाई और मजबूरी है

कैसे हैं ये बंधन प्यार के, जो दो पल में बंध जाते हैं

आंसुओं के सावन में तेरे बाहों के झूले याद आते हैं

                                         राजीव रावत 

                                बोस्टन (अमेरिका)