बारिश और मै…

तेज तपन और बैचेन मन

काले घने बादल

 उमस भरा दिन।

सूखी नदियाँ,ताल तलैया

और प्यासा मन।

महकती हवा और चंचल मन

काली अंधेरी घटाएँ चलें

भीगे मन

झर-झर बहते ताल-तलैया

भिगा देते  मन।

हरा-भरा  प्रकृति का वेश

झूम-झूम चल दिया मेरा मन, 

डगर- डगर 

 हर पनघट पर 

 डूबकी खाए मेरा मन।

खुशनुमा मौसम 

 गहराता जाता है

 ऐसा है बारिश से रिश्ता मेरा।

 बरसती शाम की छटा निराली

छन -छन बाजे  पायल मेरी।

रात की बारिश का आलम

 न पूछो 

और ख्वाहिशें करें, 

 मेरा  भीगा- भीगा  मन।

सैर-सपाटा, दोस्तों से वादा,

बारिश का मौसम,

 घूमें , नाचे मेरा मन

 ऐसे ही हैं दोनों भीगे-भीगे

 बारिश और मैं।

सौ निशा अमन झा,”बुधे”

वैशाली नगर 

जयपुर