तेज तपन और बैचेन मन
काले घने बादल
उमस भरा दिन।
सूखी नदियाँ,ताल तलैया
और प्यासा मन।
महकती हवा और चंचल मन
काली अंधेरी घटाएँ चलें
भीगे मन
झर-झर बहते ताल-तलैया
भिगा देते मन।
हरा-भरा प्रकृति का वेश
झूम-झूम चल दिया मेरा मन,
डगर- डगर
हर पनघट पर
डूबकी खाए मेरा मन।
खुशनुमा मौसम
गहराता जाता है
ऐसा है बारिश से रिश्ता मेरा।
बरसती शाम की छटा निराली
छन -छन बाजे पायल मेरी।
रात की बारिश का आलम
न पूछो
और ख्वाहिशें करें,
मेरा भीगा- भीगा मन।
सैर-सपाटा, दोस्तों से वादा,
बारिश का मौसम,
घूमें , नाचे मेरा मन
ऐसे ही हैं दोनों भीगे-भीगे
बारिश और मैं।
सौ निशा अमन झा,”बुधे”
वैशाली नगर
जयपुर