नई दिल्ली । प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) की वैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी है। इसकी वजह से पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम जैसे कई नेताओं की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। कई हाई प्रोफाइल मामलों में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच पिछले कुछ समय से एक तरह से ठंडे बस्ते में पड़ी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से अपने अधिकारों पर मुहर लगने के बाद ईडी की गतिविधियों में तेजी आ सकती है। ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में की गई अपनी सुनवाई में कहै है कि कोर्ट ने कहा कि ईडी के निदेशक को तलाशी, जांच, समन, बयान दर्ज कराने, दस्तावेज लेने, हलफनामा मांगने, गवाहों के परीक्षण आदि मामलों में उसी तरह के अधिकार हैं, जैसे सिविल कोर्ट को होते हैं।
कांग्रेस नेता पी चिदंबरम, उनके सांसद बेटे कार्ति चिदंबरम, जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, उद्योगपति शिविंदर मोहन सिंह आदि के खिलाफ चल रही जांच, अब रफ्तार पकड़ सकती है। इनके अलावा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी, फारूक अब्दुल्ला, भूपिंदर सिंह हड्डा, नवाब मलिक, अभिषेक बनर्जी, पार्थ चटर्जी समेत कई अन्य नेता भी जांच के दायरे में हैं।
बहुत से लोगों के खिलाफ जांच और मुकदमे की कार्रवाई इसलिए धीमी पड़ गई थी, क्योंकि ईडी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रही थी, जहां सौ से ज्यादा याचिकाएं दाखिल करके पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी, जमानत, जब्ती जैसे अधिकारों को चुनौती दी गई थी। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी आरोपों को खारिज कर दिया और पीएमएलए एक्ट के तहत ईडी के अधिकारों पर संवैधानिक मुहर लगा दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि ईडी को आरोपियों को इन्फोर्समेंट केस इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट (ईसीआईआर) देने की भी जरूरत नहीं है। यह एक तरह से पुलिस एफआईआर जैसी होती है। इसमें तलाशी, जब्ती और समन करने की वजहें बताई जाती हैं। कई आरोपियों ने तो ईडी के सामने जवाबी हलफनामा दाखिल करने से भी छूट मांगी थी।
एक न्यूज पोर्टल के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ ने तो अपने खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में ईसीआईआर को चुनौती देते हुए आदेश भी हासिल कर लिया था कि एजेंसी उसके खिलाफ कोई कार्रवाई न करे। अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि ईडी की गिरफ्तारी से जुड़ी प्रक्रिया मनमानी नहीं है। जांच के दौरान पुलिस अधिकारियों को छोड़कर ईडी, एसएफआईओ, डीआरआई के अधिकारियों के सामने दर्ज बयान भी वैध सबूत हैं। कोर्ट ने कहा कि ईडी के निदेशक को तलाशी, जांच, समन, बयान दर्ज कराने, दस्तावेज लेने, हलफनामा मांगने, गवाहों के परीक्षण आदि मामलों के उसी तरह के अधिकार हैं, जैसे सिविल कोर्ट को होते हैं।