परमपूज्य दीदी मंदाकिनी श्रीरामकिंकर के प्रवचन प्रसंग

भोपाल। तुलसी मानस प्रतिष्ठान में प्रतिष्ठा आयोजन तुलसी जयंती समारोह 2022 के अंतर्गत बुधवार दिनांक 3 अगस्त से रविवार 7 अगस्त 2022 रामकथा के अवसर पर व्यासपीठ से तृतीय प्रचचन संध्या पर पूज्य दीदी मंदाकिनी श्रीरामकिंकर ने अपने प्रवचन में कहा जब परब्रम्ह निर्गुण निराकार रूप में होता है तो उसे बाह्य नेत्रों से देखना संभव नही है ; पर जब वह सगुण साकार रूप में अवतरित होता है, तभी वह दिखाई देता है।
आपने कहा कि कोहबर प्रसंग में प्रभु के दर्शन का एक बड़ा महत्वपूर्ण सूत्र प्राप्त होता है। युगतुलसी की संपूर्ण व्याख्या अन्वेषणात्मक है और वे साधना और उपासना के गूढ़तम रहस्य हमारे समक्ष अत्यंत सरल शब्दों में प्रस्तुत करते है।

  • गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस छंद मे जिस निज शब्द का प्रयोग किया है।
    भगवान श्रीराम ने शबरी के समक्ष बड़े महत्व की बात कही है।
    मम दर्शन फल परम अनूपा, जीव पाव निज सहस सरूपा।
  • संसार में अन्य व्यक्ति के दर्शन में और मेरे दर्शन में एक अंतर है। प्रभु श्रीराम ने कहा मेरा दर्शन सबसे अनोखा है। जब व्यक्ति किसी दूसरे का दर्शन करता है और वह स्वभाव से उदार है तो वह कुछ न कुछ श्रेष्ठ देता है। पर जब कोई मेरा दर्शन करता है तो मैं उसे कुछ नही देता- उसे अपने निज स्वरूप का ज्ञान हो जाता है कि मैं स्वयं सत चित आनंद हूँ- उसकी अज्ञानता जनित दरिद्रता नष्ट हो जाती है और उसमें ज्ञान का प्रकाश हो जाता है। धर्म के साथ भी जब तक निज शब्द नहीं जोड़ेगे तब तक धर्म की पूर्णता का आपको ज्ञान ही नहीं होगा।
    गीता और रामायण में धर्म के बाद – निज धर्म या स्वधर्म की बात कही गयी।
    पर यदि आप भक्त है तब ये ‘‘निज’’ तो भक्ति का प्राण है, सर्वस्व है। सारा रहस्य ही इस निज शब्द में समाया हुआ है।
    भक्तों का कथन है कि ईष्वर तत्व महानतम होते हुए भी यदि हमारी पहुँच से दूर है, हम उसे पा नही सकते, हम उसे मिल नही सकते, तो हमारे लिए उसका कोई विषेष अर्थ नहीं-भक्तों का यही प्रयास रहता है कि जो अनंत ब्रह्मांडो का स्वामी है वो हमारा निज कब बनेगा, और कब वें मुझे अपने निज के रूप में स्वीकार करेंगे- दोनों ओर से निजत्व की स्वीकृति हो, ये है भक्ति की पराकाष्ठा है।
    इस अवसर पर समारोह के मुख्य श्रीमती कृष्णा गौर ने पूज्य दीदी सुश्री मंदाकिनी श्रीरामकिंकर एवं प्रभुदयाल मिश्र ने दीप प्रज्जवलन कर पं.पू.पंडित रामकिंकरजी एवं गोस्वामी तुलसीदास जी के चित्रों पर माल्यार्पण किया।
    अपने मुख्य अतिथि उद्बोधन में श्रीमती कृष्णा गौर ने कहा कि भारतीय सनातन संस्कृति पूरे विश्व का मार्ग प्रशस्त करती आयी है। इसमें श्रीरामचरितमानस का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। भगवान श्रीराम का चरित्र उनके द्वारा किये गये कर्तव्य का अनुसरण कर हम हमारे जीवन की सभी समस्याओं का समाधान कर सकते है। आपने भारतीय दर्शन की साक्षात प्रतिमूर्ति तथा पूज्य युग तुलसी की ‘शिष्या मंदाकिनी श्रीरामकिंकर के प्रति कहा कि आपकी वाणी में सरस्वती विराजमान है जिसके प्रभाव से हम सब ज्ञान, भक्ति, वैराग्य की कथा श्रवण करने का सौभाग्य मिला है। परमानंद का अनुभव करते है। इस अवसर पर प्रभुदयाल मिश्र ने सभी के प्रति स्वागत करते हुए कहा कि कोहबर प्रसंग के माध्यम से पूज्य दीदी ने श्रीराम विवाह का बहुत सुंदर चित्रण किया है।
    इस अवसर पर अपनी कृति ब्रह्मवादिनी पूज्य दीदी मंदाकिनी जी को और श्रीमती कृष्णा गौर को भेट की।
    दीदी के स्वागत करने वाले में कार्याध्यक्ष रघुनंदन शर्मा डॉ.मालती जोशी, कैलाश जोशी, स्वर्णकार समाज के ओ.पी.सोनी, श्रीमती आशा सिन्हा कपूर, महीप निगम, वनमाली सृजन पीठ,रामेश्वर मिश्र, अशोक भट्ट, बद्रीनारायण औदिच्य, रामगिरीष द्विवेदी, करूणाधाम के श्रीकृष्णमुरारी पाठक, श्रीमती उषा जायसवाल एवं जायसवाल,पंडित सुरेश तांतेड, मधुवन द्वारा दीदीजी को पुष्पगुच्छ देकर सम्मान किया।
    आभार प्रदर्शन देवेन्द्र कुमार रावत ने किया। कार्यक्रम का संचालन कमलेश जैमिनी द्वारा किया गया। पंचदिवसीय प्रवचन का कार्यक्रम प्रतिदिन की तरह कल ठीक सायं 6.30 बजे से प्रारंभ होगा।