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भारत माता कहूं क्या मैं तुमसे
आज देश बहुत शर्मिंदा है ।
मुंह में राम बगल में छुरी
रखने वाले जिंदा है।
आजादी का अमृत महोत्सव
आज मना रहा है देश।
समता का पाठ पढ़ाने वाले
क्यों फैला रहे जातिगत विद्वेष।
वर्ष पचहत्तर (75) बीत गए हैं
कहते मिली हमें आजादी है ।
जहां मिटा नहीं अभी तक
स्पृश्यता,छुआछूत,और भेदभाव
फिर हमें मिली कैसी आजादी है?
एक समय में गुरु द्रोण ने
काटा अंगूठा एकलव्य का ।
आज देश फिर शर्मसार हुआ
हत्या हुआ शिष्य इंद्र का।
आज जन्मोत्सव है श्री कृष्ण का
जगह-जगह पर टंगी है मटका
होड़ लगी है उसे फोड़ने
क्या गैर स्वर्ण से नहीं छुआएगा
दही का मटका ?
छैल सिंह का कैसा था छलिया
मनुवादी मटका
छूते ही उसे लगा
छुआछूत का झटका।
अबोध था बालक इंद्र मेघवाल
जान सका था भेद न इतना
मटके का पानी पीने से
चली जाएगी जान भी उनका
सोच न पाया तनिक क्षण भी
यह कैसी थी निर्मम घटना।
जाति है कि जाती नहीं है
समता सबमें आती नहीं है
जातिवाद का जहर घुला है
वर्ण व्यवस्था हावी है।
ऊंच-नीच में बांट कर हमको
कहते धर्म हमारा संकट में है।
नीयत तुम्हारी खोटी है
सोच तुम्हारा गंदा है।
आडंबर और पाखंड का
बस धर्म तुम्हारा धंधा है।
भारत मां कहूं क्या मैं तुमसे
आज देश बहुत शर्मिंदा है
सच्ची आजादी तब-तक मिलेगी नहीं
जब तक ऐसे पाखंडी जिंदा हैं ।
आज देश बहुत शर्मिंदा है।
भीम कुमार
गावां,गिरिडीह,झारखंड