भगवान भरोसे चल रही मेडिकल यूनिवर्सिटी

मार्कशीट से माता पिता का ही नाम गायब
-कुलपति बोले चल रहा सुधार कार्य
जबलपुर । मप्र आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय (एमयू) प्रबंधन द्वारा हाल हीं में एक एमडीएस (मास्टर ऑफ डेंटल सर्जरी) के विद्यार्थी को बीडीएस (बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी) की डिग्री थमाए जाने का मामले से पर्दा उठ भी नहीं पाया था कि एमयू प्रबंधन का फिर एक नया कारनामा सामने आ गया। इस बार मामला एक दो नहीं बल्कि एमयू के हजारों विद्यार्थियों की अंकसूचियों जुड़ा हुआ है। दरअसल अचानक ही हजारों अंकसूचियों से विद्यार्थी के माता पिता का नाम पृथक कर दिया गया।  विद्यार्थियों को ऐसी अंकसूचियां जारी कर दी गईं जिसमें विद्यार्थी का तो नाम है लेकिन उनके माता-पिता का नाम नदारद हैं। इस मामले में शिकायत के बाद हरकत में आया प्रबंधन आनन फानन में सुधार में जुट गया है। एमयू में अंकसूचियों के साथ डिग्रियां प्रदाय करने में भी बड़ी अनियमितता सामने आ रही है, विद्यार्थियों की मानें तो उन्हें डिग्रियां तो आसानी से मिल रहीं हैं लेकिन खासी मशक्कत के बाद भी अंकसूचियां नहीं मिल पा रही हैं। इस बीच खबर है कि एमयू में व्याप्त अनियमितताओं को सुलझाने के लिए सुबह 10 बजे से रात 8 बजे तक कथित तौर पर मैराथन बैठके ले रहे नवागत कुलपति डॉ. अशोक खण्डेलवाल ने डिप्टी रजिस्ट्रार डॉ. पुष्पराज बघेल को एमयू का प्रवक्ता घोषित किया है ताकि विश्वविद्यालय में व्याप्त अनियमितताओं से जुड़े किसी भी सवाल का जवाब दिया जा सके। स्वयं एमयू के अधिकारी दबी जुबान से कह रहे हैं कि यदि अधिकारी कर्मचारी मैराथन बैठकों में ही जुटे रहेंगे तो सुधार कार्य कब कर पाएंगे। एमयू के अधिकारी दबी जुबान से यह भी स्वीकार रहे हैं कि कुलसचिव के रहते एक उपकुलसचिव को प्रवक्ता के रूप में नियुक्ति देते हुए कुलपति क्या संदेश देना चाह रहे हैं यह समझ से परे हैं। हालांकि तमाम अनियमितताओं के बीच कार्य परिषद (ईसी) पदाधिकारियों, एमयू के अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच चल रहा अंर्तद्वंद धीरे-धीरे सामने आने लगा है।

-कुलपति को पता ही नहीं, कहाँ जाएं विद्यार्थी
हजारों विद्यार्थियों की अंकसूचियों से उनके माता पिता के नाम गायब होने के विषय में करीब एक माह पूर्व पदभार ग्रहण कर चुके कुलपति डॉ. अशोक खण्डेलवाल को वर्तमान में कोई जानकारी नहीं है। उनका कहना है कि कई विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों के साथ उनके अभिभावकों के नाम नहीं दिए जाते हैं, यहाँ के विषय में उन्हें जानकारी नहीं हैं। कुलपति को जब इस बात से अवगत कराया गया कि अब तक तो अंकसूची में विद्यार्थी के अभिभावकों के नाम होते थे, तब उन्होंने कहा कि एमयू बड़ा विश्वविद्यालय है त्रुटियों में सुधार कार्य कराया जाएगा। इधर अपने माता पिता के नाम जोड़े बिना मिली अंकसूचियों के विषय में विद्यार्थियों की स्थिति काटो तो खून नहीं जैसी हो गई है। विद्यार्थी अपने स्तर पर जिम्मेदारों से लिखित शिकायत देकर सुधार की गुहार लगा रहे हैं लेकिन शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई न हो पाने से वे दुखी हैं।   

-गुटबाजी की भेंट चढ़ी व्यवस्थाएं
सूत्रों की मानें तो नवागत कुलपति के आगमन के साथ ही एक्टिव एक कार्यपरिषद सदस्य और कुलपति की घोषणा के बाद से उनसे दूरभाष पर सतत संपर्क में रहे तीन उप कुलसचिवों लगभग हर मामले में एकमतेन नजर आ रहे हैं जबकि कुलसचिव अलग थलग पड़ गए हैं। कुलसचिव डॉ. प्रभात बुधोलिया के पद पर रहते हुए एमयू की ओर से अधिकृत प्रवक्ता के पद पर उप कुलसचिव पुष्पराज बघेल को बनाए जाने के विषय में पूछे गए सवाल के जवाब में कुलपति डॉ. खण्डेलवाल का कहना है कि वर्तमान कुलसचिव अपना कार्य देखेंगे जबकि एमयू की ओर से उनकी व्यस्तता के चलते हर मामले में जानकारी दने के लिए डॉ. बघेल की नियुक्ति की गई है।   

-ब्रांच और थीसिस भी नहीं लिखा जा रहा डिग्री में
एमयू में बेपटरी हो चुकी व्यवस्था से पीडि़त एक विद्यार्थी ने बताया कि एमयू द्वारा प्रदत्त डिग्रियों में कॉलेज संस्था के नाम के साथ ही एमयू के नाम में अत्यधिक त्रुटिपूर्ण डिग्रियां प्रदान की जा रही हैं। विद्यार्थी ने बताया कि उसनके एमडी मेडिसिन की डिग्री के लिए अप्लाई किया था जिसमें कई त्रुटियां पाई गईं। न तो डिग्री में ब्रांच का उल्लेख था, न तो थीसिस का उल्लेख था और न हीं माता पिता के नामों का। विद्यार्थी ने बताया कि कई विद्यार्थियों को तो ऐसी डिग्रियाँ भेज दी गईं जिनमें कुलसचिव, कुलपति, परीक्षा नियंत्रक एवं एक उपकुलसचिव के ने गलत डिग्री को ही वैरीफाई कर हस्ताक्षर भी बिना किसी संशोधन के कर दिए।

-अकुशल सॉफ्टवेयर कंपनी को क्यों ढ़ा रहा एमयू
एमयू सूत्रों के अनुसार एमयू प्रबंधन के अकुशल अधिकारियों की लापरवाही के साथ काफी हद तक अंकसूचियों और डिग्री निर्माण में त्रुटिपूर्ण कार्य के लिए एमयू में कार्यरत सॉफ्टवेयर कंपनी भी जिम्मेदार हैं। एमयू के कुलपति डॉ. खण्डेलवाल ने इस विषय में कहा कि यदि कंपनी पूरी तरह अयोग्य है तो इस कंपनी को बाहर का रास्ता दिखाते हुए अन्य कंपनी को भी यह कार्य सौंपा जा सकता है।