बाल काल में राघव ने
कैकेयी माता संग खेला एक खेल।
राघव जीते मैया हारी ।
राघव बोले मैया प्यारी ।
एक वर तुम को देना होगा।
मैया बोली एक क्यों ?
तुम रघुनंदन हो मेरे ।
माथे का चंदन हो मेरे ।
जितने वर मांगोगे मुझसे
मुझको तो देना होगा ।
राघव ने स्वर को धीमा किया ।
बोले माता हैं बात बड़ी गंभीर ।
वचन दो ना टालोगी ।
जो वर मुझको दे डालोगी ।
एक क्षण में बिना किए संकोच
कैकय हंसकर बोल उठी
मैं प्राण भी तुम पर वारूंगी।
तुम बोलो , हे राघव
मैं तुम्हारा कहा ना टालूंगी ।
हे माता, भारी अपयश सहना होगा।
जब तक पृथ्वी रहेगी ।
अपमान वहन करना होगा ।
कुमाता कहकर तुम्हें पुकारगें।
तुम्हारे नाम पर नाम ना
किसी स्त्री का धारागें ।
माता बोली हे राघव ।
मैं तुम्हारे लिए हर पीड़ा सह सकती हूँ।
तुम अपमान, अपयश की कहते हो।
मैं तो तुम्हारे लिए विष भी पी सकती हूँ।
राघव तनिक भी न संकोच करो।
अपनी माता पे ना संदेह करो ।
तो हे माता जिस कारण ।
इस पृथ्वी पर जन्म लिया ।
वह काज सफल करना होगा।
अति हो चुकी हैं अत्याचारों की
अब असुरों को मरना होगा।
धरती त्राहि-त्राहि करती हैं।
इसे संतापो से मुक्त करना होगा।
जब पिता श्री से आप अपने दोनों वर मांगेंगी।
एक में भरत का राजतिलक ।
और दूजे में राघव के लिए चौदह वर्ष का वनवास मांगेंगी।
मैया सबसे अधिक हैं तुमने प्रेम दिया।
इस जीवन में अगाध स्नेह दिया।
अब मेरी एक विनती स्वीकार करो।
कैकय के नैयनो से अश्रु धार बही।
मौन स्वीकृति बारंबार बही।
कैकय ने राघव के प्रेम में
अपयश को भी शिरोधार्य किया।
कितनी वंदनीय हैं वो माता।
जिसने जगत के पालनहार
पर उपकार किया।।
संध्या साँझ
बेली रोड ,मौर्य पथ, पटना (बिहार ) 800014
संपर्क सूत्र– 7987469615
Email -sandhyajha198@Gmail.com