‘‘नये वर्ष में पुराने निवेश का हलवा’’

यह पहली बार नहीं है, जब नया वर्ष पहली तारीख को आया हो। आज तक कभी नहीं पूछा- मे आई कमीन सर? हर वर्ष इसी तारीख को दरवाजा ठोंक के घर में घुस जाता है और कोई कुछ नहीं कर पाता। वर्ष नया हो या पुराना झम्मन को सपने देखने की बुरी लत है। इस लत से कभी नाली में नहीं गिरे। लत के लिए कभी हाथ नहीं पसारने पड़े। रोज सपने देखते और खयाली पुलाव बनाकर दिन गुजार देते। कोई हानि-लाभ नहीं होता। पिछले तीन दिन से इस लत से परेशान थे। परेशानी का कारण था, नये साल के सपने अपने बिस्तर पर अपने ही घर मंे देखने पड़ रहे थे। 

पिछली बार सपने उन्होंने ससुराल में देखे थे। ससुराल में जेब की सेहत पर फर्क नहीं पड़ता। चोंच चलाई और चीज हाजिर। सुबह से शाम तक चोंच चलती। पनीर से नीचे बात नहीं होती। ससुराल में पानी भी पनीर वाला चाहिए। ससुराल सुख की सार और जमाई दुख की खान। जिस घर में जमाई जम जाएं, वहां दूसरे दुखों को जगह नहीं मिलती। अपने घर में अखबार का निवेश का पन्ना और ससुराल में रेसेपी का काॅलम। साले साहब की दौड़ बाजार तक। साहब और जमाई राजा को किसने नाखुश किया है?

ससुराल में लंच के बाद शहर घूमना है। गाड़ी है तो, पेट्रोल भी लगता है। ससुराल में पेट्रोल भरवाना तौहीन है। आखिर तौहीन का काम क्यों किया जाए? आफिस में बाबू और ससुराल में बाॅस। साले साहब को आदेश दे दिया-शाम आते समय गाड़ी फुल करवा लेना। अपनी जेब पर वजन न पड़े तो घूमने का विचार स्वाभाविक है। घूमने के लिए जरूरी नहीं कि शहर की गलियां नापी जाएं? आसपास के पिकनिक स्पाट भी तो देखे जा सकते हैं? नये साल की शुरूआत क्यों न वहीं से की जाए? कौनसा अपनी जेब खाली होगी। बजट किसी का भी बिगड़े उन्हें तो हलवा खाने से मतलब। बजट बनाने वाले हलवा खाते और बजट को भोगने वाले रोटी को तरसते हैं। 

खैर इस बार बिटिया की प्री बोर्ड परीक्षा के कारण नये साल के सपने में खिचड़ी आने लगी। घर की खिचड़ी में पनीर नहीं पड़ता, फिर खिचड़ी तो खिचड़ी है। सपने में खिचड़ी देखना और घर में खिचड़ी खाना सेहत और घर के बजट के लिए फायदेमंद है। घर का बजट और सेहत दोनों नहीं बिगड़ते। साल के अंत में घर का बिस्तर खिचड़ी के सपने की अनुमति देता है। घर में सपने वे ही देखना चाहिए, जिसमें घर का बजट ना बिगड़े। 

बहरहाल … रात को सपने में खिचड़ी में घी डाला तो पनीर का स्वाद आ गया। पता नहीं था कि, यह सपना केवल सपना बनकर रह जाएगा। आफिस जाने से पहले खिचड़ी का सपना धरा का धरा रह गया। वीडियो काॅल पर जबरदस्ती मुस्कराना पड़ता है। साहब का रोबदार चेहरा मुस्करा रहा था। साहब मुस्करा रहे हैं तो झम्मन को मुस्कराना है। साहब किसी भी मुद्रा में हो झम्मन को गम्भीर रहना ही है। यही प्रोटोकाॅल है। साहब के सपने अच्छे हो या बुरे, लेकिन उन सपनों का इजहार साहब के सामने नहीं किया जाता। साहब ने मुस्कराते हुए कहा-झम्मन जी नये साल का जश्न आपके महल में मनाने का विचार है। झम्मन के अंदर के भाव अंदर और बाहर के भाव बाहर रह गए। अंदर के भाव बाहर आ जाते तो पूरा वर्ष खयाली पुलाव में निकल सकता है। 

झम्मन के भाव ने कहा-हम और कर भी क्या सकते हैं? हम तो खरबूजा हैं। कटना और सजना नीयती है। मुसीबत कभी अकेले नहीं आती। साहब के साथ छोटे साहब भी साथ में आ रह हैं। व्यवस्था के लिए बड़े बाबू को तो आना ही था। 

झम्मन का खिचड़ी स्वप्न धरा का धरा रह गया। उसमें पड़ा घी जम गया। सेहत जैसी थी, वैसी ही रही। घर का बजट बनने से पहले बिगड़ गया। गाड़ी में पेट्रोल भरवाया गया। सब्जी में पनीर उढे़ला गया। कड़ाके की सर्दी में आइस्क्रीम भी खाई गई और पिज्जा भी मंगवाया गया। सुबह छोले-भटूरे न आते तो सुबह अलसायी खड़ी की खड़ी रह जाती है। 

झम्मन को नये साल के पहले दिन ही पुराने निवेशकों की जबरदस्त याद आई। नये साल के बजट में खिचड़ी ही खिचड़ी दिखाई दे रही थी, घी तो हलवा बनाने में खुट (समाप्त) गया। 

सुनील जैन राही पालम गांव

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