अब कुछ शेष नहीं है,
अगर है तो बस लकीरें
लकीरें! जो हैं बेतरतीब ….
लिपटी रहती हैं शरीर से,
देखो तो लगता है जैसे वक्त ने
कोई गहना पहना दिया है। ।।
हर लकीर की अपनी तहरीर,
एक अलग इतिहास और ….
न जाने कितनी ही कहानियाँ
गढ़ी हुई हैं इन लकीरों में। ।।
कितने ही आँसुओ और
तन्हाइयों का हिसाब भरा है…..
लकीरें! जिनमें लहरा रहा है…
अरमानों, अनुभवों, एहसासों,
मिन्नतों और शिकायतों से भरे
आँसुओ का अथाह समंदर। ।।
कई बार पूछा! कभी बताओ
इन लकीरों के पीछे की दास्ताँ!
हर बार आँखों में कुछ छुपा,
होठों पर जबरन मुस्कान लिए
बस यही कहा….
लकीरों की भाषा पढ़ी नहीं जाती!!!
नीना जैन लाइफ कोच दूरदर्शन एंकर