मेरी कविता …

रोती चिल्लाती

मेरे दरवाजे पर आ कर खड़ी हो गई 

उस के चेहरे पर

नाखून से बने जख्म से

खून रिस रहा था

उस के शब्द 

पसीने से भीगे थे 

उस की पक्तियां अस्त व्यस्त थी

देख कर मैं घबरा गया

उसे कभी  माथे पर लगाता

कभी छाती से चिपकाता

मेरा हर सांस उस से पूछ रहा था

बता किस ने किया है यह सब  ? 

कौन उत्तर दायी है

भरी हुई आंख से

कांपते शब्दों में 

डरी हुई आवाज में

उस के मुख से निकला

राजधानी से

मेरी कविता 

मेरे भीतर ही

 अपना अस्तित्व खोने लगी

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रमेश कुमार “संतोष “

85 निमला कालोनी

छहराटा अमृतसर( पंजाब) 

9876750370