मेरे सपनों का भारत

मैं देख रहा सुंदर सपना।

कल कैसा हो भारत अपना।।

सपना है जागी आँखों का।

सपना प्रतिभा के पाँखों का।।

सपना विकास के कामों का।

हाथों को मिलते दामो का।।

सपना शीतल हरियाली का।

सपना हर घर खुशहाली का।।

बस कर्म प्राण हो कर्ता का।

ख़ुद पर ख़ुद की निर्भरता का।।

ना कोई फैला हाथ दिखे।

मानव मानव के साथ दिखे।।

तितली के पंख न घायल हों।

मोरों के पग में पायल हों।।

पैरों से लम्बी चादर हो।

समरसता के प्रति आदर हो।।

ना किसी हृदय से उठे हाय।

हर पीड़ित पाए प्रबल न्याय।।

चाहे घर आलीशान न हो।

झुग्गी का नाम निशान न हो।।

संरक्षित हो शिशु का जीवन।

ऐसे घर हों जैसे उपवन।।

कुदरत का कोप न हो हावी।

सतयुग-त्रेता सा हो भावी।।

बारिश केवल वरदानी हो।

धरती की चूनर धानी हो।।

सबको सुंदर परिवेश मिले।

दुनिया से ऊपर देश मिले।।

ना ही उन्मादी नारे हों।

ना कम्पित छत, दीवारें हों।।

हो स्वच्छ, सुपाचक लासानी।

निर्मल हो नदियों का पानी।।

पंछी चहकेँ परवाज़ करें।

विष-मुक्त हवाएं नाज़ करें।।

ना सीलन हो, ना काई हो।

बस्ती-बस्ती अमराई हो।।

हो लुप्त पीर, परिताप मिटे।

दैहिक-दैविक संताप मिटे।।

हर एक जीव में नाथ दिखें।

फिर सिंह-वृषभ इक साथ दिखें।।

ना धर्मो का उपहास बने।

हिंसा बीता इतिहास बने।।

ना रुदन, वेदना, क्रंदन हो।

केवल सुपात्र का वंदन हो।।

ना सत्ता पागल मद में हो।

नौकरशाही भी हद में हो।।

ना लाशों पर रोटियाँ सिकें।

ना दो रोटी को देह बिकें।।

बिन रिश्वत बिगड़ा काम बने।

हर गाँव-शहर श्री-धाम बने।।

बीमारी, ना बीमार मिले।

सस्ता, सुंदर उपचार मिले।।

ना लुट पाएं, ना ही लूटें।

ना दर्पण से सपने टूटें।।

सिद्धांत न कोई शापित हो।

नैतिकता फिर स्थापित हो।।

मासूमों की मुस्कान खिले।

तरुणाई को चाणक्य मिले।।

गुरुकुल जैसी शालाएं हों।

उन्मुक्त बाल-बालाएं हों।।

सबको समान अधिकार मिले।

समरसता का उपहार मिले।।

मानस इस हद तक बनें शुद्ध।

सब शांत दिखें ना दिखें क्रुद्ध।।

ना कोई वंचित, शोषित हो।

जो पाए जन्म सुपोषित हो।।

जुगनू तक ना बेचारा हो।

अंधियारों में उजियारा हो।।

हर इक विकार पे विजय मिले।

मानवता निर्भय अभय मिले।।

ना बहने बिलखें ना माँएं।

ना बारूदी हों सीमाएं।।

ना आगज़नी, ना रक्तपात।

ना मर्यादा को सन्निपात।।

मंगल तक जाए, ना जाए।

जीवन मे मंगल आ जाए।।

नैतिकता-युक्त सियासत हो।

आज़ादी अमर विरासत हो।।

जन निष्ठावान कृतज्ञ बने।

सांसें हवि, जीवन यज्ञ बने।।

मंथन से अर्जित अमृत हो।

फिर से अखंड आर्यावृत हो।।

निज राष्ट्र भुवनपति सौर बने।

फिर जगती का सिरमौर बने।।

             ■ प्रणय प्रभात ■

             श्योपुर (मध्यप्रदेश)