अतरंगी लाल महान ज्ञानी इंसान हैं आज अपनी खटारा स्कूटी पर सफर करते हुए सामने से गुजरते ट्रक पर फिर से स्लोगन पढ़ लिया ..”.नजर हटी.. पूडी बटी” इस स्लोगन के सारे शब्द अंतर्ध्यान हो गए लेकिन पूड़ी शब्द उनके दिमाग में और उनकी जबान पर रह गया अतरंगी लाल मुफ्त की बटने वाली पूडियो के बेहद कायल इंसान हैं कहते हैं.. जैसा स्वाद मुफ्त की पूडी में आता है वैसा तो घर के बने छप्पन भोग में भी नहीं आता है उनका मानना है कि दाने दाने पर लिखा होता है खाने वाले का नाम.. लेकिन आजकल दाने दाने पर लिखा होता है पार्टी का नाम.. नेताओं का नाम.. लेकिन वह कहते हैं उन्हें क्या ..पक्ष का रहे या विपक्ष का.. उन्हें तो खाने से मतलब है। और खाते समय बिल्कुल नहीं सोचना चाहिए इसीलिए वो बिल्कुल नहीं सोचते.. करोड़ों करोड़ खाने वाले एक बार भी नहीं सोचते विचारते, वो सोच -सोचकर क्यों अपनी पूडी का जायका खराब करें.. हमारे देश में सब खाते हैं कोई सामने से खाता है कोई पीठ पीछे खाता है कोई नया-नया और शर्मिला है तो छुपछुपा कर खाता है और जो नहीं खाता है उसे मूर्ख समझा जाता है, ऐसे ही थोड़े ना आधे से अधिक लोग शुगर के मरीज है यह सब छुप-छुपाकर खाने के नतीजे हैं।
अतरंगी लाल मुफ्त की पूड़ियों की फिराक में पूरे साल लगे रहते हैं उन्हें चुनाव का इंतजार रहता है जैसे पपीहा को स्वाति नक्षत्र के जल का इंतजार रहता है जैसे कोई नेता को चुनाव का इंतजार रहता है उन्होंने इसके लिए सारा इंतजाम करके रखा है सफेद झकाझक कुर्ता, पजामा, टोपी यह विशेष आभूषण है पार्टी अनुसार गमछे का भी प्रबंध कर रखा है जहां जैसी पार्टी पूडी वैसे गमछे का रंग बदल जाता है जिससे वह अपना हार सिंगार पटार करके निकलते हैं वह विशेष अवसरों पर ही निकालते हैं जो हर जगह काम आता हैं।चाहे किसी की मय्यत में जाना हो या चुनाव प्रचार में जाना हो उनके पास इन सब का अनुभव है उनके कलेक्शन के वजह से ही चुनावी सभा और रैलियों के वक्त सबसे पहले उन्हें याद किया जाता है।
उनको पता है कि जेब से फक्कड़ और बेरोजगार को पूडी खाने देखने और छूने का का शुभ अवसर कुछ दुर्लभ अवसरों पर ही प्राप्त होता है और जब उनका मटका तृप्त होकर अतरंगी लाल को आशीर्वाद देने लगता है अब भला वह अवसर कैसे छोड़ सकते हैं दोनों हाथों से लपक कर पकड़ लेते हैं अब वह अवसर कहां से आया कौन लाया कैसे आया इसमें सिर ,हाथ ,पैर खपाने की उन्हें जरूरत बिल्कुल नहीं महसूस होती और ना ही वह सोचना चाहते हैं। अतरंगी लाल बिल्कुल अच्छी तरह से जानते हैं उनका और पूड़ी से मिलन कोई करवा सकता है तो वह है सफेद झकाझक कुर्ता ,टोपी और पजामा ही है इसीलिए वह उसको जान के पीछे सलामत रखते हैं। वरना सरकारें तो बहुत आई और बहुत गई सब ने दम लगा कर चिल्ला चिल्ला कर कहा आप हमें वोट दीजिए हम आपके मटके का ख्याल रखेंगे .. सब ने अपने अपने हिसाब से बहुत कोशिश किया लेकिन पूडी की तो बात छोड़ दीजिए रोटी भी सबको मयस्सर नहीं करवा पाई। कुछ इसको पाने की जुगत में निपट गए और कुछ इसके सपने देखते देखते निपट गए।
उनका तो सिंपल सा फंडा है पूड़ी मिलने और बटने की संभावना वाले पवित्र स्थानों को वह अपना तीर्थ समझते हैं बस इतनी सतर्कता उनको बरतनी रहती है कि उनके पापी पेट के भरने से पहले पूड़ी शेष ना हो जाए । पूडी बटने के शुभ अवसर के समय उनका हाथ कान निगाहें सभी इंद्रिया सरकारी विभागों के जैसे हो जाते हैं जो ऊपर से डांट खाने के बाद एकदम अपने लक्ष्य को समर्पित हो जाए अपनी पूरी शक्ति झोंक दें अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए ..सही गलत धर्म अधर्म से परे रहते हुए.. अतरंगी लाल को ऐसे अवसरों पर सिर्फ अर्जुन के जैसे मछली की आंख दिखाई देती है अर्थात पूडी दिखाई देती है। और उन्हें इस व्यर्थ के संसार से कोई मतलब नहीं।
रेखा शाह आरबी
बलिया (यूपी )