पुनर्पाठ

 कल 

 झुंड में कई कुत्ते दिखे

मुझे सड़क पर 

भौंक रहे थे सब 

आपस में एक

 दूसरे को काट रहे थे

देखते ही दौड़े

 झुंड के कुत्ते सभी मेरी तरफ़

किसी तरह भागते- भागते 

 जान बचायी अपनी

झुंड से दूर एक और कुत्ता

चुपचाप बैठा था 

न उसने भौंका 

और न ही 

काटने की कोई क्रिया की 

प्रयास किया 

समझने का ऐसा क्यों 

तब मेरे मन ने कहा 

लग रहा है कि शायद 

अच्छे आदमी की संगति रही हो 

स्थानांतरित हो गया है

मानवीय गुण इसके अंदर

सभ्यता और संस्कृति

 का खूब अमृतपान किया है

ज़हर इसके भीतर 

का निकल चुका है

इसी उधेड़बुन में मैं था 

हमला कर दिया तभी

चुपचाप पीछे से उसने

निर्मम तरीके से काटा मुझे

और काटता रहा तब तक

 गिर नहीं पड़े जब तक हम 

लहूलुहान नहीं हो चले 

दौड़े- दौड़े एक अधेड़

 व सज्जन मेरे पास आए 

किसी तरह मेरी जान बचाए

सहमी व लड़खड़ाती आवाज़

में मैंने पूछा 

 यह शांत बैठा था 

नहीं उम्मीद थी 

यह मुझे काटेगा 

 और कुत्तों से भिन्न लगा मुझे

समझ रहा था मैं कि

कुछ संस्कार

 बिगड़े होंगे इसके

  जो श्वान बनकर 

इस जनम में 

प्रायश्चित कर रहा है

लेकिन जो बताया उन्होंने

 हिल उठा सुनकर मैं

कहा साहब! 

यह मेरे पड़ोसी का कुत्ता है 

बड़ी- बड़ी पार्टियों में जाता है

उनके रंग- ढंग ही अपनाता है

वहां की संस्कृति का 

बारंबार पुनर्पाठ करता है 

यह भौंकता नहीं 

    सिर्फ़ काटता है 

झुंड वाले कुत्तों से 

 बिल्कुल अलग है

  साहब यह ! 

सम्पूर्णानन्द मिश्र

शिवपुर वाराणसी

7458994874