लोकतंत्र अभी जीवित है

लड़ाई सीमाओं पर नही…

घर की दहलीज के अन्दर

घुस आई है…

साम्प्रदायिकता के किटाणु 

भाषणो के माघ्यम से..

खून में ठोंस दियें गये है…

 हम अपनी पहचान भूलते जा रहे है..!

रोजगार की तलाश

जलूस में शामिल होती है….

गोली या डण्डे की चोट

भूख का माघ्यम बन जाती है .

मेरे देश में ..

लोकतन्त्र घुट्टी में दिया जाता है…!

भीड़ को..

हाथ खड़ा करने का ..

आदेश दिया जाता है..

फिर देश की..

समस्याओं…… 

असमस्याओ के फैसले का बोझ

अपने कंधो पर लाद कर

बुत बन जाते है…

 फिर संवाददाता सम्मेलन में…

बहुमत होने की

घोषणा कर दी जाती है..

 यह जानते हुये भी… 

कि…हाथ खड़ा करने वाली भीड़

आई नही

लाई गई है..

 मेरे देश में

लोकतंत्र अभी जीवित है…????

रमेश कुमार संतोष