भक्ति की पात्रता के लिए कोई किताब या डिग्री नहीं होती : स्वामी भास्करानंद

:: आनंद नगर में चल रही शिव पुराण कथा में मना शिव पार्वती विवाहोत्सव ::
इन्दौर। भक्ति का उदगम मन से होता है, क्योंकि मन ही मंदिर और परमात्मा का स्वरूप है इसीलिए मन की मलीनता दूर करना हमारा पहला लक्ष्य होना चाहिए। भक्ति की पात्रता के लिए कोई किताब या डिग्री नहीं होती। श्रद्धा स्थिर और विश्वास अटल होना चाहिए, क्योंकि ये दोनों शिव और पार्वती के प्रतीक हैं। श्रद्धा का सृजन सत्संग से होगा। श्रद्धा और विश्वास धर्म के दो स्तंभ हैं। जितनी हमारी श्रद्धा बढ़ेगी, भगवान भी उतना ही हमारे निकट आएंगे। शिव और शक्ति के बिना सृष्टि का संचालन संभव नहीं है। श्रद्धा का सृजन मन के विचलन को कम कर देता है।
ये दिव्य विचार हैं वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद महाराज के, जो उन्होंने अग्रवाल संगठन नवलखा क्षेत्र द्वारा आनंद नगर स्थित आनंद मंगल परिसर में आयोजित शिव पुराण कथा में मौजूद श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। कथा में आज शिव पार्वती विवाह का उत्सव धूमधाम से मनाया गया। भगवान शिव दूल्हे के रूप में अपने भूत-प्रेत, चुड़ैल जैसे गणों के साथ बारात लेकर कथा स्थल पहुंचे तो भक्तों ने पुष्प वर्षा कर शिवजी का बारात का स्वागत किया। साध्वी कृष्णानंद के मनोहारी भजनों ने इस उत्सव के आनंद को इस कदर बढ़ा दिया कि समूचा सभागृह नाच उठा। कथा शुभारंभ के पूर्व श्रीमती आशा विजयवर्गीय, समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, नारायण अग्रवाल, पार्षद मृदुल अग्रवाल, अजय मंगल, ओमप्रकाश क्षीरसागर, राजेन्द्र समाधान, विपीन गोयल, सीमा बंसल, संजय बद्रुका, रीतेश गोयल एवं मनोज अग्रवाल ने व्यासपीठ का पूजन किया।
:: आज गणेश जन्मोत्सव ::
अध्यक्ष सुनील अग्रवाल एवं महामंत्री राजेन्द्र अग्रवाल ने बताया कि शनिवार, 29 अप्रैल को भगवान गणेश जन्मोत्सव मनाय जाएगा। कथा का समापन रविवार 30 अप्रैल को द्वादश ज्योतिर्लिंगों की कथा के बाद फूलों की होली के साथ होगा। कथा प्रतिदिन दोपहर 4 से सायं 7 बजे तक हो रही है। बड़ी संख्या में आसपास की 25 कालोनियों के श्रद्धालु इस दिव्य अनुष्ठान का पुण्य लाभ ले रहे हैं।
आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने कहा कि यदि मन में श्रद्धा नहीं है तो मूर्ति केवल पत्थर नजर आएगी और श्रद्धा होगी तो उसमें परमात्मा के दर्शन भी हो सकेंगे। पावर हाउस मूर्ति में नहीं, हमारे अंदर है। श्रद्धा हर किसी में नहीं होती। श्रद्धा का होना पूर्व जन्म के संस्कारों पर भी निर्भर है। दुनिया में मन से ज्यादा उपजाऊ कुछ नहीं है। खेत में कितने ही अच्छे बीज बोएं, मौसम और प्रकृति के कारण उनका अंकुरण समय-बेसमय पर होता है, लेकिन मन की भूमि तो इतनी उपजाऊ होती है कि बीज बोते ही फसल आ जाती है। पाप बोएंगे तो पाप और पुण्य बोएंगे तो पुण्यकी फसल मिलेगी। श्रद्धा का सृजन मन के विचलन को कम कर देता है।