दिखाने में लगे हैं

पुराने खास नामों को मिटाने में लगे हैं

बरसों में मिली कुर्सी को जमाने में लगे हैं

मिटाके दूसरों की बड़ी लकीरें बार बार

अपनी छोटी लकीर को बढ़ाने में लगे हैं

मात दिया सबको बातों के मायाजाल से

रंगीन खोखले सपने दिखाने में लगे हैं

हर बात में सियासत हर काम में दिखावा

घर हारकर बाहर जीत जताने में लगे हैं

पड़ोसियों से रिश्तों में तनाव है इन दिनों

दूसरी गली में तालियाँ बजवाने में लगे हैं

आम जनता को बताकर खास जीत गए

अब उसे खून के आँसू पिलाने में लगे हैं

पेश कर रहे हैं सारे मुद्दों को तोड़ मोड कर

अपना लिखा इतिहास सुनाने में लगे हैं

कोई शाबासी भी किसी को दे नहीं सकते

खुद को दूध का धुला बताने में लगे हैं

पीट रहे हैं पुरानी लीक पूरी शिद्दत के साथ

तुर्रा यह कि नई मौसिकी सुनाने में लगे हैं

जो भी उनकी जीत और नाम की वजह थे

आज उन्हें रौंदकर नए रास्ते बनाने में लगे हैं

वे करीबी साथियों से भी वफ़ा कर नहीं सकते

उन्हें मारकर ढेला- गुड दिखाने में लगे हैं

     —-डॉ टी महादेव राव 

विशाखापटनम(आंध्र प्रदेश)