संजीव-नी।

इतनी खामोश हवाएं क्यों है ?

इतनी खामोश हवाएं क्यों है,

इतनी गमगीन फिजाएं क्यों है।

हाल ए दिल तो सुनाओ जरा,

इतनी बे-असर दुआये क्यों हैं।

दर्द हमारा तो ला इलाज है,

बेअसर इतनी दवाये क्यों हैं ।

नजरें बता गई बेरुखी का सबक,

आंखों में लाल ढेर अंगारे क्यों हैं।

इंतहा हो गई लम्हों के इंतजार की,

अपनी यादों के गमगीन इशारे क्यों हैं।

लोरियां सो गई दर्द बयां करते संजीव,

आसुओं के जुगनू इतने बेसहारे क्यों हैं।

हिम्मत रखो अंधेरों के बाद रोशनी आएगी,

आप के हौसले इतने थके हारे क्यों हैं।

संजीव ठाकुर, रायपुर, छत्तीसगढ़, 9009 415 415