जो पूछ रहे हैं राम कौन और राम कहाँ?

◆ अँधियारे के अभ्यस्तों को,

उजियारा दर्पण  दिखलाएं।

जो पूछ रहे हैं राम कौन?

जो पूछ रहे हैं राम कहाँ?

आओ हम उनको बतलाएं।।

◆ दशरथ-नंदन, कौशल्या-सुत,

जीवन समग्र अनुपम, अद्भुत।

नर रूप किया जगती कारण,

धरती पर प्रकटे नारायण।

जो मात-पिता-गुरु परम् भक्त,

भौतिक विलास से थे विरक्त।

थे अवधपुरी के राज कुँवर,

जो बने जनक तनया के वर।

पतितों, दुखियों के उद्धारक,

आसुरी शक्ति के संहारक।

सत्ता त्यागी सन्यास लिया,

वनवास लिया, गिरिवास किया।

आदर्श बनाया जीवन को,

पूजित कर दिया विकट वन को।

जब राजतिलक स्वीकार किया,

तब राम-राज्य साकार किया।

की पूर्ण प्रजा की प्रत्याशा,

दी राज-धर्म की परिभाषा।

फिर त्याग देह साकेत गए,

रच कर असंख्य प्रतिमान नए।

बन गए भुवनपति जननायक,

लिख कर सुकर्म की गाथाएं।

जो पूछ रहे हैं राम कौन?

जो पूछ रहे हैं राम कहाँ?

आओ हम उनको बतलाएं।।

◆ है राम वस्तुतः परम् तत्व,

है राम सनातन महा सत्व।

है राम सगुण श्रद्धा द्योतक,

है राम संस्कृति का पोषक।

मर्यादा का अभिनंदन है,

शीतलता दायी चंदन है।

त्यागी, अनुरागी, दाता है,

कलियुग में मुक्ति प्रदाता है।

है घोर तमस के बीच किरण,

है नैतिकता, अनुशीलन, प्रण।

है समरसता का संवाहक,

है जीव-दया का ध्वजवाहक।

पावन विधान, करुणा निधान,

है पराक्रमी संग क्षमावान।

जो शोणित सा है नस-नस में,

जो अन्तस् में, जो मानस में।

जो भीतर है, जो बाहर है,

जो रिपुनाशक अभ्यंकर है।

शिव भोले डमरुधारी का,

आराध्य राम त्रिपुरारी का।

महिमा अपार रघुनंदन की,

हम निज श्रद्धा पर इठलाएँ।

जो पूछ रहे हैं राम कौन?

जो पूछ रहे हैं राम कहाँ?

आओ हम उनको बतलाएं।।

◆ जो हर ले हर नैराश्य राम,

सब सद्ग्रन्थों का भाष्य राम।

मानवता का उद्घोष राम,

है स्वयंसिद्ध जयघोष राम।

है राम सभ्यता की बयार,

जीवन शैली का सूत्रधार।

फल पावन रस से भरा राम,

है व्योम राम, है धरा राम।

इक महायज्ञ, सत्संग राम,

हैं इंद्रधनुष के रंग राम।

निश-दिन भजता जा राम-राम,

है प्राण-सुधा बस यही नाम।

उद्गार राम, व्यवहार राम,

मनभावन सी मनुहार राम।

जो मेघों के घर्षण में है,

बिजली के आकर्षण में है।

जो सरिता में सागर में है,

जो भक्ति भरी गागर में है।

छल-छिद्र रहित निर्मल मन में,

जो उपवन में, जो कानन में।

हैं अखिल कोटि ब्रह्मांडधीश,

सुर, संत अहर्निश गुण गाएं।

जो पूछ रहे हैं राम कौन?

जो पूछ रहे हैं राम कहाँ?

आओ हम उनको बतलाएं।।

◆ सविनय, सर्वज्ञ, समर्थ राम,

है शब्द स्वयम है अर्थ राम।

संकल्प, प्रकल्प, विकल्पों में,

संवत, युगाब्द में, कल्पों में।

घट में, पनघट, अन्तर्घट में,

गृह, देवालय में, मरघट में।

शोषित, वंचित की आहों में,

पीड़ित की करुण कराहों में।

भावों में और विचारों में,

भक्तों की विह्वल पुकारों में।

जो तृण-तृण में, जो कण-कण में,

जो युग-युग में, क्षण-प्रतिक्षण में।

जो श्वांस-श्वांस, स्पंदन में,

जो सरस, सरल अभिवादन में।

जो राग, रागिनी, तालों में,

जो श्रम से पगे निवालों में।

करुणा-वरुणालय, दीनबंधु,

भवसागर तारक, दयासिंधु।

आभासित जो मंतव्यों में,

पथ, पथिकों में, गंतव्यों में।

सर्वत्र विराजित राम मेरा,

तुम देख सको तो दिखलाएं।

जो पूछ रहे हैं राम कहाँ?

आओ हम उनको बतलाएं।।

                ■प्रणय प्रभात■

          श्योपुर (मध्यप्रदेश)