महज़ सामान्य ट्वीट से चिढ़कर पत्रकारों पर गम्भीर धारा में प्रकरण दर्ज करना अलोकतांत्रिक एवं अभिव्यक्ति की आज़ादी के ख़िलाफ़ : स्टेट प्रेस क्लब, मप्र

:: महामहिम राष्ट्रपति को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग ::
इन्दौर । अमेठी में चुनावी आरोप-प्रत्यारोप की उपलब्ध हुए जानकारी के आधार पर किए किए गए सामान्य ट्वीट्स के आधार पर दो वरिष्ठ पत्रकारों पर केस दर्ज करने का विरोध करते हुए स्टेट प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश ने महामहिम राष्ट्रपति को पत्र लिखकर उनसे हस्तक्षेप का अनुरोध किया है। संगठन ने इसे सोशल मीडिया पर सेंसरशिप, लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी के विरुद्ध बताया है।
ज्ञातव्य है कि अमेठी में चुनाव समाप्ति के बाद प्रत्याशी स्मृति ईरानी की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से संघ एवं भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा चुनाव में पूरी ताकत से मेहनत ना करने को लेकर शिकायती स्वर में बात करने की ख़बर राजनीति के गलियारों में दौड़ रही है। वरिष्ठ पत्रकार आवेश तिवारी द्वारा इस पर महज पांच वाक्यों का ट्वीट किया गया। इससे चिढ़कर अमेठी में भाजपा नेताओं द्वारा तिवारी के विरुद्ध धारा ५०५ (2) में प्रकरण दर्ज़ करवा दिया गया। पत्रकारों द्वारा किए गए विरोध को दरकिनार करते हुए अगले दिन इसी बात को ट्वीट करने वाली वरिष्ठ पत्रकार सुश्री ममता त्रिपाठी पर भी मुकदमा दर्ज़ करवा दिया गया। केवल सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर पत्रकारों पर केस दर्ज किए जाने से मीडिया जगत आक्रोशित है।
स्टेट प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश के अध्यक्ष प्रवीण कुमार खारीवाल एवं महासचिव आलोक बाजपेयी ने महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को लिखे पत्र में लिखा है कि ये कदम अन्यायपूर्ण, दमनकारी, लोकतंत्र की मूल भावना के विरुद्ध एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करता है। सिर्फ सामान्य ट्वीट के आधार पुलिस की कार्रवाई अतिरेकी है और देश की संवैधानिक प्रमुख होने के नाते वे इस पर रोक लगाएँ ताकि संविधान द्वारा आम भारतीय को प्रदान अधिकारों की रक्षा हो सके। साथ ही महज़ सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर शासकीय सम्पत्ति को नुक़सान पहुँचाना, आगज़नी, हिंसा भड़काने जैसे अपराधों की धारा लगाना सुप्रीम कोर्ट द्वारा सोशल मीडिया पर लेखन को स्वतंत्र रखने की मंशा के विरुद्ध है।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत का स्थान बेहद निचले स्थान को याद कराते हुए प्रवीण कुमार खारीवाल एवं आलोक बाजपेयी ने कहा कि इस तरह पत्रकारों की स्वतंत्रता का हनन करता और सोशल मीडिया पर लेखन को बैन और सेंसर करने का कृत्य अघोषित इमरजेंसी जैसा प्रतीत होता है। हमें विश्वास है कि आप इस अनैतिक, ग़ैरक़ानूनी एवं अलोकतांत्रिक क़दम के विरुद्ध हर सम्भव कार्यवाई कर देश के पत्रकारों की आपसे लगी उम्मीद पर खरे उतरते हुए पीड़ित पत्रकार आवेश तिवारी को ना सिर्फ़ राहत देंगी बल्कि भविष्य के लिए भी एक नज़ीर स्थापित करेंगी। खारीवाल एवं बाजपेयी ने पत्रकारों के हितों की चिंता करने वाली अन्य संस्थाओं से भी इस मामले को गंभीरता से लेने की अपील की है।