:: गीता भवन में रामदेव मन्नालाल चेरिटेबल ट्रस्ट एवं गोयल परिवार द्वारा रामकथा में मना राम विवाह का उत्सव ::
इन्दौर । राम का चरित्र पूरी तरह निर्दोष है। राम यदि मर्यादा पुरुषोत्तम है तो सीताजी भारतीय नारी का आदर्श प्रतिबिम्ब। जिस दिन हर घर में राम जैसा बेटा और सीता जैसी बहू हो जाएंगे, राम राज्य स्वतः चला आएगा। राम का चरित्र यदि निर्दोष है तो सीताजी का चरित्र उतना ही उज्जवल और पावन है। नारी का सच्चा आभूषण इसकी लज्जा होती है। धनुष यज्ञ अहंकारी राजाओं के घमंड को तोड़ने का प्रतीक है। रामचरित मानस की कथा मनुष्य को निर्भयता प्रदान करती है। महापुरुष वही हो सकते हैं, जो स्वयं की समस्या को छोड़कर राष्ट्र की समस्याओं के निवारण का चिंतन करते हैं।
ये दिव्य विचार हैं वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद की सुशिष्या साध्वी कृष्णानंद के, जो उन्होंने गीता भवन में रामदेव मन्नालाल चेरिटेबल ट्रस्ट, गोयल पारमार्थिक ट्रस्ट एवं गोयल परिवार की मेजबानी में चल रही राम कथा में भगवान श्रीराम के विवाह उत्सव एवं वन गमन के प्रसंगों की व्याख्या के दौरान व्यक्त किए। गुरुवार को कथा में वरिष्ठ समाजसेवी विनोद अग्रवाल, मुंबई की योग प्रशिक्षक चांदनी नाथानी, लंदन की योग प्रशिक्षक चार्लोट बॉटमली एवं रूस की आईना गारनूशेनकोवा ने समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, विजय गोयल एवं अन्य बंधुओं के साथ व्यासपीठ का पूजन किया। लंदन और रूस से आई इन योग प्रशिक्षकों ने ध्यानमग्न होकर रामकथा का श्रवण किया। गीता भवन में कथा का यह क्रम 23 जून तक प्रतिदिन सांय 4 से 7 बजे तक चलेगा।
भगवान राम के वनवास गमन एवं ऋषि विश्वामित्र, गुरू वशिष्ट एवं राजा जनक के राज पुरोहित शतानंद का उल्लेख करते हुए साध्वी कृष्णानंद ने कहा कि भगवान राम ने माता-पिता और गुरू की आज्ञा मानकर उनकी सेवा जैसे आदर्श प्रस्तुत किए हैं। सीताजी का त्याग और समर्पण भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। एक आदर्श भारतीय नारी का स्वरूप यदि कहीं देखना हो तो केवल सीता माता के व्यक्तित्व में ही मिल सकता है। हमारे कर्म विनाशी हैं, कर्म से मिलने वाले फल भी नाशवान है, लेकिन प्रभु राम एवं परमात्मा की सेवा के निमित्त किए गए कर्मों का फल कभी नष्ट नहीं होता। संसार के लुभावने विषय भोग और मोह-माया के मकड़जाल से मुक्ति के लिए अपनी सत्ता का परमात्मा की सत्ता में विलय होना आवश्यक है। बिना सत्संग और गुरू के परमात्मा की कृपा प्राप्त करना संभव नहीं है। जीवन में ऐसा कोई कर्म नहीं करना चाहिए, जिससे राम नाम का चिंतन छूट जाए और हमारे भजन भक्ति का प्रवाह बिखर जाए।