नई दिल्ली । रेलवे बोर्ड ने सुझाव दिया है कि चीफ लोको इंस्पेक्टर हर छह महीने में एक दिन का गहन परामर्श लोको पायलट और उनके सहायकों के लिए आयोजित करें, जिसमें स्वचालित सिग्नलिंग प्रणाली के बारे में जानकारी दी जाए। इसके बाद एक योग्यता परीक्षा आयोजित की जानी चाहिए, जिसमें बहुविकल्पीय प्रश्न होंगे। बोर्ड के अनुसार, गहन परामर्श के दौरान ‘स्वचालित सिग्नलिंग क्षेत्र में काम करने की प्रणाली’, ‘स्वचालित सेक्शन में असामान्य कामकाज के दौरान जारी किए गए सभी संबंधित फॉर्म और निर्धारित गति सीमाएं’, और ‘ट्रेनिंग के दौरान की गई गलतियों पर आधारित एनीमेटेड वीडियो बनाए जाने पर चर्चा होगी।
रेलवे बोर्ड ने यह भी निर्देश दिया है कि जब भी नई स्वचालित सिग्नलिंग क्षेत्र के परिचय की सूचना मिले, तो चीफ लोको इंस्पेक्टर सभी लोको पायलट्स और सहायक लोको पायलट्स के लिए दो दिन का ट्रेनिंग सेशन आयोजित करेंगे और उन्हें स्वचालित सेक्शन में काम करने के लिए एक दक्षता प्रमाणपत्र जारी करेंगे। रेलवे बोर्ड ने यह भी निर्देश दिया है कि नई स्वचालित क्षेत्र के चालू होने के बाद पहले साल के दौरान हर दो महीने में सभी लोको पायलट्स और सहायक लोको पायलट्स की गहन काउंसलिंग सुनिश्चित की जाए। इसके बाद, हर छह महीने में यह काउंसलिंग की जाएगी। इसके अलावा, बोर्ड ने जोनल रेलवे ट्रेनिक इंस्टीट्यूट में चीफ लोको इंस्पेक्टर के लिए हर तीन साल में तीन दिन का ट्रेनिंग कार्यक्रम भी सुझाया है।रेलवे बोर्ड ने बताया कि भारतीय रेल सिग्नल इंजीनियरिंग और दूरसंचार संस्थान में चीफ लोको इंस्पेक्टर के लिए मौजूदा दो दिन के प्रशिक्षण मॉड्यूल को अब तीन दिन का कर दिया गया है, ताकि ऑटोमेटिक सिग्नलिंग पर अधिक व्यापक ट्रेनिंग दी जा सके।
बता दें कि रेलवे बोर्ड ने सभी मंडलों से कहा है कि ‘लोको पायलट’ की ट्रेनिंग में यूनिफॉर्मिटी लाएं, खासकर ऑटोमेटिक सिग्नल क्षेत्र में। विशेषज्ञों का कहना है कि हाल की ट्रेन दुर्घटनाओं के बाद यह जरूरी हो गया है, क्योंकि जांच में सिग्नल की विफलता को भी एक कारण पाया गया है। रेलवे बोर्ड ने 13 जुलाई को जारी एक सर्कुलर में कहा, विभिन्न रेलवे मंडल ऑटोमेटिक सिग्नल क्षेत्र में कामकाज के सिलसिले में ‘रनिंग स्टाफ’ के लिए अलग-अलग प्रशिक्षण व्यवस्था का पालन कर रहे हैं। मानकीकरण के लिए रेलवे मंडलों को संलग्न प्रशिक्षण व्यवस्था का पालन करने की सलाह दी जाती है।