वर्धमान नगर एयरपोर्ट रोड में प्रातःकालीन धर्मसभा का हुआ आयोजन
भोपाल । मुनि श्री ने कहा कि पाप की क्रिया करेंगे तो पाप का बंध तो होगा ही होगा और जब पाप का बंध होगा तो पाप का फल भी मिलेगा ही मिलेगा मुनि श्री ने कहा कि मनुष्य के जीवन की यह एक विडंबना है, कि वह कर्म बांधने में बैखौफ होकर कर्म बांधता है,और जब वह कर्म पककर अपना फल देता है तो बहूत रोता है, कि हाय यह कैसे हो गया? मुनि श्री ने कहा कि जैसा कर्म तुमने किया है, तो बैसा फल तुम्है भोगना ही पड़ेगा जब महापुरुषों को भी कर्म फल भोगना पड़ा तो हम तुम तो साधारण प्राणी है।इसलिये कोई भी अशुभ कर्म है उसको करते समय सावधान रहो मुनि श्री ने कहा कि भगवान पारसनाथ के जीव को देखो एक भव में गल्ती हुई गलत फहमी हुई उस पाप को काटने में 10भव लग गये और मुनि बनने के पश्चात भी कर्मों ने नहीं छोड़ा
चकृवतीओ तथा बड़े बड़े महापुरुषों को भी कर्म ने नहीं छोड़ा मुनि श्री ने कहा कि जीवन में पुण्य पाप का चक्र निरंतर चलता रहता है,कर्म बंध निरंतर हो रहा है इस बात का अहसास होंना छाहिये। मुनि श्री ने कहा कि अपराध का फल जेल है इसलिये अपराध करने से डरते हो,पाप फल दुर्गति है,जिस दिन यह बोध हो जाऐगा आप पाप से बच जाओगे मुनि श्री ने कहा कि पाप से डरोगे तभी कर्म के फल से बच पाओगे मुनि श्री ने कहा कि अशुभ प्रवत्तियों से हर पल सावधानी रखिये जीवन बहुत छोटा सा है,जीवन की कहानी समाप्त हो जाऐ कहा नहींं जा सकता
न कल का भरोसा है,न पल का भरोसा मुनि श्री ने
श्रीमद् राजचंद्र जो कि एक जैन साधक थे,और गांधी जी उनको अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे वह हमेशा कहते थे कि तीन बातें सदैब ध्यान रखना
काल सिर पर सबार है मौत कभी भी तुम पर हांवी हो सकती है पांव रखते ही पाप लगता है यानि हमारी प्रत्येक प्रवत्ती में पाप समाया हुआ है,कदम कदम पर पाप का बंध हो रहा है यह अहसास अपने मन में जाग्रत होंना चाहिये।
नजर खोलते ही जहर चड़ता है पंचेन्द्रिय के विषयों की ओर देखा नहीं कि उनका जहर चड़ा नहीं यह विषय विष से खतरनाक बिष है विष तो एक भव को लीलता है विषय भोग भव भव को लील जाते है मुनि श्री ने कहा कि जिसे कर्मों से डर लगता है उसी को बैराग्य होता है आचार्य श्री हमेशा कहा करते थेसंसारी प्राणी सभी वीर योद्धा है इनको कर्मों से कोई डर नहीं लगताजिसे कर्मों से डर होता है वही कर्मवंध से बच सकता है उन्होंने कर्मवंध के फल से बचने का उपाय बताते हुये कहा कि कर्म जब पक कर तैयार है और अपना फल दैने लगे तो सबसे पहले समता रखो उस पर हर्ष विषाद या राग द्वैष मत करो यदि करोगे तो कर्म और हांवी होगा।
समता सबसे बड़ी तपस्या हैदुःखों को सहने का नाम ही तप है,खुद के दुःख, खुद को ही सहना पढ़ते है,कर्म को रो रो कर सभी को सुनाओगे तो वह और बडेंगे इसलिये कहा है कि कर्म करने से पहले सोचो और कर्म आऐ तो समता रखोगे तो धीरे धीरे बुरा समय टल जाऐगा, राष्ट्रीय प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी ने बताया मुनिसंघ वर्धमान नगर भोपाल में विराजमान है मुनि श्री के सानिध्य में आगामी10 अप्रेल को महावीर जयंती राजधानी भोपाल में ही मनाई जाऐगी ज्ञातव्य रहे उपरोक्त दिवस आचार्य गुरुदेव ने सोनागिर तीर्थ पर मुनि श्री को 1988 में मुनिदीक्षा प्रदान की थी अतः मुनि श्री 38 बां दीक्षा दिवस धूमधाम से मनाया जाऐगा।