गैस त्रासदी: 50 साल से जमीन में रिसकर फैल रहा जहर -1969 से दबा रहे थे कचरे को जमीन में

भोपाल (ईएमएस)। यूनियन कार्बाइड कारखाने से निकलने वाले जहरीले कचरे को जमीन के अंदर दबाने की प्रक्रिया वर्ष 1969 से चल रही है। इसी साल कारखाने की स्थापना भी हुई थी। यह कचरा कारखाने के गोडाउन में बाहर पड़े 340 मीट्रिक टन कचरे से ज्यादा खतरनाक है। यह कचरा 1984 में हुई त्रासदी की याद दिलाते हुए रोज आसपास की 42 बस्तियों में जहर घोल रहा है। कचरे का जहर रिसकर पहले 15, फिर 30 और अब 42 बस्तियों तक पहुंच चुका है। इस साल अप्रैल में ही इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सीलॉजी रिसर्च (आईआईटीआर) ने रिपोर्ट दी है कि यूनियन कार्बाइड कारखाने के आसपास की 42 बस्तियों का भूजल इस जहरीले कचरे की वजह से बहुत ज्यादा प्रदूषित हो चुका है। 34 साल में कई बार भूजल को लेकर रिपोर्ट आई, लेकिन इस कचरे के निष्पादन के लिए कभी कोई कदम नहीं उठाए गए। अब इन बस्तियों में स्वास्थ्य सुविधाओं पर काम करने वाली संस्था संभावना ट्रस्ट ने एक शोध सामने रखा है कि गैस पीड़ितों में मृत्यु की दर त्रासदी के गैर प्रभावितों की तुलना में 28 प्रतिशत ज्यादा है। शोध में कहा गया है कि गैस कांड से गैर प्रभावितों की तुलना में प्रभावित लोग 63 प्रतिशत ज्यादा बीमार हैं और इनमें सांस की तकलीफ, घबराहट, सीने में दर्द, चक्कर, जोड़ों में दर्द जैसी समस्याएं आम हैं। यूका के जहरीले कचरे को हटाने के लिए अदालती लड़ाई लड़ रही सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढींगरा कहती हैं कि त्रासदी स्थल पर दो जगह कचरा है। एक, गोडाउन में लगभग 340 मीट्रिक टन रासायनिक कचरा है, जिसका अभी बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में इसी गोडाउन के कचरे को हटाने को लेकर केस चल रहा है। यह भूजल को प्रदूषित नहीं कर रहा है। दूसरा, 68 एकड़ क्षेत्रफल के कारखाने में कंपनी द्वारा 1969 से 1984 तक उसी परिसर में ही जमीन के अंदर जहरीला कचरा दबाया गया। 1977 तक परिसर में 21 गड्ढों में जहरीला कचरा डंप होता रहा। इसके बाद कारखाने की बाहर की 32 हेक्टेयर जमीन पर तीन तालाब बनाकर जहरीला कचरा इसमें डाला जाने लगा।बारिश के दौरान कई बार यह तालाब ओवरफ्लो होता था और जहरीला कचरा खेतों तक जाता था। कई बार इस जहर से मवेशियों की मौत हो गई। यह सिलसिला 1984 तक चला। यूनेप ने कहा कि यदि भारत सरकार इसकी अपील करती है तो हमारे पास इस कचरे को हटाने के संसाधन है। इस मामले में जब पर्यावरण मंत्री रहे प्रकाश जावड़ेकर से बात की तो उन्होंने विदेशियों से कचरा हटवाने के लिए मदद लेने से इंकार कर दिया। यूका के आसपास के क्षेत्र में प्रदूषित भूजल का परीक्षण पिछले 34 सालों में 10 से ज्यादा संस्थाएं कर चुकी हैं। इनमें मप्र सरकार का लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, नेशनल एनवायरमेंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी), ग्रीन पीस इंटरनेशनल, पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट देहरादून, मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नेशनल जियोग्राफिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सीलॉजी रिसर्च जैसे संस्थान शामिल हैं।भोपाल ग्रुप फॉर इनफॉर्मेशन एंड एक्शन के सतीनाथ षड़ंगी बताते हैं कि जमीन में दबे इस जहरीले कचरे पर नेशनल जियोग्राफिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट और नेशनल एनवायरमेंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट शोध कर चुके हैं। इन दोनों संस्थाओं की रिपोर्ट पर यूपीए सरकार के वक्त टियर रिव्यू कमेटी बनाई गई। कमेटी ने बताया कि यह रिपोर्ट विश्वसनीय नहीं है क्योंकि संस्थाओं ने सिर्फ 9 प्रतिशत हिस्से के सैंपल लिए। इसके बाद कुछ समय पहले गैर सरकारी संगठनों ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण प्रोग्राम(यूनेप) से जमीन में दबे कचरे को हटाने की अपील की।