एक ही स्टाम्प पेपर कर लिए दो अनुबंध, जांच में भी नहीं दे रहे जबाव
उज्जैन (ईएमएस)। विक्रम विश्वविद्यालय में किताब खरीदी में अनियमतिताओं का दौर जारी है। वर्ष 2015 और 2016 में हुई एक करोड़ से ज्यादा की किताब खरीदी की जांच रही है। जांच पर अभी तक निर्णय नहीं हुआ। इधर, विवि प्रशासन नई किताब खरीदी कर रहा है। इस प्रक्रिया में भी विवि ने नियमों के विरुद्ध प्रक्रिया को अंजाम दिया है। विवि प्रशासन ने मार्च 2018 में टेंडर के माध्यम से किए अनुबंध में गलत प्रक्रिया का पालन किया। विवि ने दिल्ली की कंपनी से दो बार अनुबंध किया और दोनों पर एक ई-स्टाम्प पेपर का उपयोग किया। सूचना के अधिकार के तहत यह दस्तावेज सार्वजनिक भी हो चुके है। इसके बावजूद विवि प्रशासन गलत अनुबंध के आधार पर किताब खरीदी कर रहा है।
विक्रम विवि के अधिकारियों ने बनाया कूटरचित ई-स्टाम्प
विक्रम विश्वविद्यालय में खरीदी व टेंडर प्रक्रिया में शासन के नियमों के विपरित काम करने के साथ ही कूटरचित दस्तावेज का निर्माण किया जा रहा है। प्रशासनिक अधिकारियों ने वित्तीय अनियमितताओं को आपराधिक कृत से अंजाम दे रहे है। विक्रम विवि ने किताब खरीदी के लिए वर्ष 2017 में किताब खरीदी के लिए टेंडर किया। यह टेंडर प्रक्रिया फरवरी 2018 में हुई। इसके बाद दिल्ली की मेंट्रो बुक प्रा.लि से 17 मार्च 2018 को विवि ने अनुबंध किया। यह प्रक्रिया ई-स्टाम्प क्रमांक 01014308032018000578 के ऊपर हुई। इसके बाद खरीदी प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन जून माह में विवि के अधिकारियों ने एक बार फिर कंपनी से अनुबंध किया और इस बार भी ई-स्टाम्प क्रमांक 01014308032018000578 का उपयोग हुआ। इस पूरी प्रक्रिया में बड़ा सवाल यह है कि एक ही ई-स्टाम्प का दो बार प्रयोग कैसे हुआ। विवि के अधिकारियों ने दूसरी बार बिना टेंडर के अनुबंध क्यों किया। पूर्व में सूचना अधिकारी के माध्यम से जून माह में हुआ अनुबंध सामने आया। यह प्रक्रिया भी संदिग्ध थी। इसकी शिकायत राजभवन और उच्च शिक्षा विभाग से की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
पूर्व प्रकरण पर भी कार्रवाई नहीं
विक्रम विवि ने वर्ष 2015 और 2016 में किताब खरीदी में जमकर अनियमिताएं की। इसकी शिकायत पर सुनवाई नहीं होने पर मार्च 2018 में इंदौर हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगाई गई। इस याचिका पर 30 दिन के अंदर निराकरण करने का आदेश दिया। इस आदेश का आज तक पालन नहीं हुआ। इस हाईकोर्ट के आदेश पालन के अवमानना याचिका लगाई। इस प्रकरण पर भी विवि के अधिकारी सिर्फ टालने की कोशिश कर रहे है।