(भोपाल) हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस की जांच रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं

ढाई साल पहले सौंपी थी जांच रिपोर्ट, मामला बीयू में नियुक्ति का
भोपाल (ईएमएस)। शहर स्थित बरकतउल्ला विश्वविद्यालय (बीयू) में हुई नियुक्तियों में गडबडी की जांच तो ढाई साल पहले पूरी हो चुकी थी, लेकिन जांच रिपोर्ट शासन को सौंपने के बावजूद उसपर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है। जस्टिस गोहिल कमेटी की रिपोर्ट में बीयू प्रशासन की गंभीर प्रशासनिक मिलीभग और अनियमित्ताएं भी सामने आई है। जिसमें न केवल जांच समिति को गुमराह किया गया बल्कि जांच के बाद पूरे मामले में ही फेरबदल कर राजभवन की भी अवमानना भी की गई है। सूत्रों की माने तो वर्ष 2014 में नियुक्तियों में बड़े स्तर पर गड़बड़ी हुई है। इस मामले में डॉ प्रकाश खातरकर की शिकायत पर राजभवन ने हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस अभय गोहिल को इस मामले की जांच का जिम्मा सौंपा था। अभय गोहिल ने जांच कर दो साल 6 माह पहले अपनी जांच रिपोर्ट शासन को सौंप दी है लेकिन अब तक जांच रिपोर्ट की किसी अनुशंसा का पालन विवि ने किया और ना ही कोई कार्रवाई। सबसे गंभीर मामला डॉ अच्छेलाल एसोसिएट प्रोफेसर तुलनात्मक भाषा विभाग बरकतउल्ला विश्वविद्यालय भोपाल का है। गोहिल कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार डॉ अच्छेलाल 4 अप्रैल 2016 को विश्वविद्यालय से त्यागपत्र दे चुके थे उनका त्यागपत्र स्वीकार भी कर लिया गया था लेकिन वे अब भी विवि में कार्य कर रहे है।
बता दें कि जस्टिस गोहिल को तत्कालीन राज्यपाल रामनरेश यादव ने जांच अधिकारी नियुक्त किया था। रिपोर्ट में उन्होंने प्रक्रिया सुधार के लिए सुझाव दिए हैं। इसमें सिलेक्शन कमेटी को भी नियमों से बांधने को कहा गया है। बता दें कि जांच रिपोर्ट पर कार्रवाई ना करने के मामले में एक बार फिर राजभवन में इस संबंध में शिकायत की गई है। जेनेटिक्स विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर एके मुंजाल एवं डॉ रेखा खंडाई की नियुक्ति पर गोहिल कमेटी ने पाया था कि जेनेटिक्स विषय के लिए नियमित पदों में दो पद विज्ञापित किए गए थे एक पद प्रोफेसर का और दूसरा पद असिस्टेंट प्रोफेसर का और दोनों ही सामान्य श्रेणी के पद थे और इन पदों के लिए जेनेटिक्स विषय के लोग ही मांगे गए थे। 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत निर्मित पूर्णतः अस्थाई पदों में जेनेटिक्स विभाग के लिए भी दो पद असिस्टेंट प्रोफेसर एक सामान्य महिला श्रेणी और दूसरा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित था। नियमित पदों में से प्राध्यापक जेनेटिक्स पद के लिए डॉ एके मुंजाल का चयन किया गया। वहीं डॉ दिनेश परमान जेनेटिक्स विषय में ही पात्र आवेदक थे तब उनका चयन न करके एलाईड विषय की डॉ रेखा खंडाई का चयन किया गया। गोहिल कमेटी ने अनुशंसा की थी कि यूजीसी से जेनेटिक्स विषय के तीन ख्यातिनाम व्यक्तियों के पैनल से जो सिर्फ जेनेटिक्स विषय की विशेषज्ञता रखते हो से डॉ मुंजाल और डॉ रेखा खंडाई व डॉ संगीता सोनी के चयन की पुष्टि कराई जाए और साथ-साथ डॉ दिनेश परमार के प्रकरण पर भी वह पैनल विचार करें, लेकिन विवि प्रबंधन ने अब तक ऐसा नहीं किया। जस्टिस गोहिल कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार विवि में प्राध्यापक वाणिज्य के पद पर चयन समिति ने डॉ अनुरिका वैश्य का चयन किया था और डॉ पवन मिश्रा का नाम प्रीतक्षा सूची में था। अनुरिका वैश्य ने चयन के बाद पदग्रहण नहीं किया उनके स्थान पर डॉ पवन मिश्रा को नियमिति रूप से नियुक्ति प्रदान कर दी गई। पवन मिश्रा को 17 वर्षों का अनुभव वाणिज्य विषय पढ़ाने का प्राईवेट कॉलेज में था वे राजीव गांधी प्राईवेट कॉलेज में 22 वर्षों तक कार्यरत थे तथा कुछ वर्ष प्रशासनिक पद पर भी रहे जो विवि से संबंद्घ है। कमेटी ने पाया था कि मूल चयनित डॉ अनुरिका वैस का चयन डेपुटेशन पर किया गया था तब प्रतीक्षा सूची के व्यक्ति को भी डेपुटेशन पर ही नियुक्ति दी जानी चाहिए थी, उन्हें मूल चयनित व्यक्ति से अधिक लाभ प्राप्त करने की पात्रता नहीं है और इस कारण वे नियमिति नियुक्ति के लिए पात्र नहीं है। विवि प्रशासन को उन्हें नियुक्त करते समय इस बात का ध्यान दिया जाना था। लिहाजा विवि ने उन्हें गलत नियुक्ति पत्र दिया है। डेपुटेशन की अवधि अधिकतम 4 वर्ष होती है इसके अनुसार उनका कार्यकाल समाप्त हो चुका है। इसके बावजूद वे वर्तमान में विवि में कार्यरत है। इस तरह से बीयू में तत्कालीन समय में हुई अन्य नियुक्तियों में अनियमितताएं उजागर हुई थी, लेकिन बीयू प्रशासन ने आज तक कोई कार्रवाई नहीं की है।
सुदामा/14दिसंबर2018