धर्माचार्य ने कहा कि भाजपा ही नहीं किसी भी दल के राजनेताओं को ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे जग हंसाई हो। समाज, प्रदेश और देश के सामने हजारों समस्यायें हैं,नेता उनको दूर करें जनता खुद उन्हें पसन्द करेगी, वोट देगी और सत्ता की बागडोर स्वयं हाथो में पकडायेगी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 2014 का लोकसभा चुनाव है। साम,दाम,दंड और भेद का उपयोग इंसानो के लिए है, भगवान के लिए नही है।
द्वारका-एवं ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य प्रतिनिधि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि राजनेता जनता के प्रतिनिधि होते हैं, इनको अपनी भाषा को मर्यादित रखनी चाहिए। इनकी बयानबाजी से ही फिजा खराब होती है। राजनीति के लिए इस तरह का हथकण्डे अपनाना धर्मशास्त्र और कानून की निगाह में भी गलत है।
उन्होंने कहा कि किसी भी दल के नेता को चाहिए कि वह अमर्यादित बयानबाजी से बचे। उन्हे कुछ कहने से पहले सोचना चाहिए कि समाज में इसका क्या संदेश जायेगा, उसे हमेशा मर्यादित बयान देना चाहिए। किसी को उसके व्यक्तित्व के आधार पर आंकना चाहिए न/न कि जाति और धर्म के आधार पर। राजनीतिक लाभ के लिए समाज को जाति और धर्म में विभाजित करना अनुचित और संविधान के विपरीत है।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि भारत के जिस संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा के साथ देश की संप्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखने की शपथ लेकर मंत्री आदि ऊंचे पदो पर आसीन है, उन्हे उस शपथ की मर्यादा का तो ध्यान रखना चाहिए। वह राजनीतिक लाभ के लिए समाज को विखंडित न करें। उन्होंने कहा, “हमारा सनातन धर्म सब को साथ लेकर चलने की बात करता है।
दिनेश प्रदीप
जारी वार्ता