भारत के मालिक द्वारा ठुकराया हुआ पैराषुट वितमंत्री अरूण जेटली, पूर्व तड़ीपार अमित शाह और अपनी धर्मपत्नी को छोड़कर कुर्सी पकड़ने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में कोर्पोरेट फंडिंग के लिए इलेक्ट्रोल बॉन्ड नामक फर्जीवाड़ा कानून बनाकर चालू किया। दावा किया गया कि ये चुनाव सुधार की ऐतिहासिक योजना है। मीडिया ने इस योजना के खूब गीत गाए और अंत में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस कुकर्म पर अपनी आंख बंद ही रहने दी। इतना जरूर कहा कि इसका हिसाब बंद लिफाफे में कोर्ट को सौपा जाए। शीर्ष कोर्ट ने ऐसा निर्णय क्यों दिया? इस पर अपनी मंषा जाहिर नहीं की।
बहरहाल इलेक्ट्रोल बॉन्ड का उपयोग कर खरबों रूपयों का चंदा सत्तारूढ़ दल भाजपा को मिल गया है। चुनाव में उसका उपयोग भी हो गया है। सीधे तौर पर यह स्पष्ट हो गया है कि इस इलेक्टोल बॉन्ड से प्राप्त रूपयों ने चुनाव प्रभावित किए है और शीर्ष कोर्ट ने सब कुछ जानते हुए भी ऐसा होने दिया है। कहानी यही खत्म नहीं होती, यहां से शुरू होती है। जिनसे धन लिया गया है उनकी धून बजाना अब सरकार की मजबूरी है। सरकार कैसे पुंजीपतियांे की धून पर नाच रही है और इसके लिए क्या-क्या हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। इसकी जानकारी देने के पहले इलेक्टोल बॉन्ड के फर्जीवाड़े को समझने के लिए जानते है कि ये बॉंन्ड क्या है और कैसे काम करता है?
इलेक्ट्रोल बॉन्ड एक ऐसा बॉन्ड होता है, जिस पर न ही बॉन्ड खरीदने वाले का नाम लिखा होता है और न ही बॉन्ड के जरिए फंडिंग लेने वाली पार्टी का नाम लिखा होता हैं। एक फार्म भर कर देष की कुछ चुनिंदा एसबीआई बैको से 1 हजार, 1 लाख, 10 लाख और 1 करोड़ के मूल्य में अंकित इलेक्ट्रोल बॉन्ड की खरीददारी की जा सकती है।
व्यक्ति, कंपनी, हिन्दू अविभाजित परिवार, फर्म, व्यक्तियो का संघ अन्य व्यक्ति और एजेंसी इलेक्ट्रोल बॉन्ड की खरीदारी कर सकती है। इसके बाद इस बॉन्ड को विगत आम चुनाव मंे एक फीसदी से अधिक वोट पाने वाले किसी राजनैतिक दल को चंदे के रूप में देने का प्रावधान होता है। इस पूरी प्रक्रिया में किसी का भी नाम उजागर नहीं होता है। सब बेनामी ही होता है।
इलेक्ट्रोल बॉन्ड की राषि पर 100 फीसदी टैक्स की छूट मिलती है। यानी कि 1000 करोड़ के इलेक्ट्रोल बॉन्ड पर 1 रूपए भी टैक्स भुगतान की जरूरत नहीं होती है। यानी कि मंदिरो को दिया जाने वाला दान अब राजनीतिक दलो को दिया जाएगा और पापियो के पाप अब राजनीतिक दलों के कार्यालयो में धोएं जाएंगें।
कंपनी अधिनियम में हुए संषोधन के मुताबिक राजनीतिक दलांे को दिए जा सकने वाले साढ़े सात फीसदी चंदे की सीमा वाला प्रावधान हटा लिया गया है। अब कंपनी चाहे तो अपने पूरे लाभ को चंदे के रूप में दान दे सकती है। कंपनी को खातो में केवल इलेक्ट्रोल बॉन्ड की राषि लिखनी होगी, चंदा प्राप्त करने वाले राजनीतिक दल का नाम नहीं लिखना होगा।
इस पूरी योजना में बैको को पता होगा कि खरीदने वाला कौन है? बैंक सरकारी है। अतः सरकार आसानी से जान जाएगी कि किसने बॉन्ड खरीदा है। और यह भी पता लगाया जा सकता है कि अगले 15 दिनो में किस पार्टी ने कितना इलेक्ट्रोल बॉन्ड जमा कराया है। मतलब सरकार और सिर्फ सरकार ही जान पाएगी कि कौन किसको चंदा दे रहा है। केवल जान नहीं पाएगी तो इस देष की जनता। देष के मालिक को नहीं पता होगा कि उसके नौकर किस-किस से रूपया लेकर किस-किस का भला कर रहे है?
नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अटार्नी जनरल वेणुगोपाल के हवाले से कहा कि मतदाताओं को राजनीतिक दलो को मिल रहे पैसे का स्त्रोत जानने का हक नहीं है। और भी मजेदार बात यह कही कि लोकसभा चुनाव तक अदालत को इसमंे दखल नहीं देना चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की बात मानते हुए 30 मई तक सभी दानदाता के बारे में सीलबंद लिफाफे में जानकारी देने के आदेश जारी किए। गौरतलब है कि 23 मई को चुनाव परिणाम आ जाएंगे और 25 मई तक नई सरकार अस्तित्व में आ जाएगी। इलेक्ट्रोल बॉन्ड से मिले भारी भरकम रूपए से चुनाव का पूरा खेल हो जाएगा। चुनावी चंदे में पारदर्षिता और चुनाव में शुचिता समाप्त हो गई है, देश में संसद और कोर्ट तंत्र चल रहा है। लोकतंत्र की हत्या चारो स्तंभों ने मिलकर कर दी है। नौकर ये तय कर रहे है कि मालिक को क्या जानकारी देना है और क्या छुपाना है। देष का मालिक ठगा हुआ महसूस कर रहा है, नौकर मालिक बन बैठे है।
अब एक उदाहरण से समझते है कि इलेक्ट्रोल बॉन्ड में खपने वाले काले धन से देष की आंतरिक, बाहरी सुरक्षा से कैसे खिलवाड़ किया जा रहा है? देष के मतदाताओं को कैसे लूटा और छला जा रहा है? सारे राजनीतिक दल और मीडिया मौन है। संवैधानिक संस्थाओ के प्रमुुख इस लूट में अपने हिस्से के लिए गिद्द दृष्टि जमाए बैठे है। हिन्दूस्तान में शादी में बैंड वाले भी तो जिमते है।
इलेक्ट्रोल बॉन्ड के लागू होने के बाद सीमेंट के दाम दोगुने हो गए है। इस सीमित समय अवधि मंे बिके बॉन्ड में तकरीबन 88 फीसदी बॉंन्ड 1 करोड़, 12 फीसदी बॉन्ड 10 लाख वाले थे। इस तरह लगभग सभी बॉन्ड की कीमत 10 लाख से अधिक है। इलेक्ट्रोल बॉन्ड पूंजीपतियो द्वारा किए जाने वाली फंडिंग को कानूनी तरीके से छिपाने का एक तरीका है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इलेक्ट्रोल बॉन्ड से मिलने वाली राषि की कीमत 3000 हजार करोड़ से अधिक है। इसमें एक बड़ा हिस्सा सीमेंट उत्पादक कंपनियांे का है।
जनवरी में पुलवामा हमलें के पहले सीमेंट के दाम उत्पादक राज्यों में 225 रूपए प्रति बोरी थे। सीमेंट उत्पादक एसोसिएषन के अध्यक्ष शैलेन्द्र चौकसी के अनुसार मांग ना होने से कंपनियां अपनी उत्पादन क्षमता का 65 फीसदी ही उपयोग कर रही थी, मतलब ये क्षेत्र भंयकर मंदी थे। इस क्षेत्र की कमर पाकिस्तान से भारत में आयात होने वाली सस्ती सीमेंट ने भी तोड़ रखी थी, बतौर चौकसी पाकिस्तान की सीमेंट भारत की सीमेंट से 10 से 15 फीसदी सस्ती पड़ती थी। वही पाकिस्तान से भारत को आने वाली सीमेंट का 75 फीसदी हिस्सा वाघा बार्डर से आता था।
इस दौरान देश में खुफिया एजेंसी के हाई अलर्ट के बाद भी बेहद दर्दनाक पुलवामा हादसा घटित होता है। इसके बाद भारत सरकार के संबंध पाकिस्तान से लगातार खराब होते चले गए। अपनी सीमा में हुए आतंकी हमले के लिए भारत सरकार पाकिस्तान को दोष देती रही और भारतीय मीडिया भारत पाक युद्ध का ट्रायल शुरू कर दिया। बाकी पूरी कहानी आप अच्छे से जानते हो। इसी तनातनी में भारत सरकार ने पाकिस्तान से आयात होने वाली सीमेंट व अन्य उत्पादों पर आयात शुल्क 200 फीसदी लगा दिया। इसके बाद पाकिस्तान से सस्ती सीमेंट का आना बंद हो गई, मगर आतंकवादी हादसे और सीमापार से गोलाबारी बदस्तूर जारी रही। पिछले पांच महीनो में जवानो की शहादत का आकड़ा सैकड़ा पार कर गई। जो सीमेंट कंपनियां क्षमता का 65 फीसदी ही उत्पादन कर रही थी, उन्होंने बिगड़ी परिस्थितियो का फायदा उठाकर सीमेंट के दाम लगभग दौगुने कर दिए। सिडिकेंट बनाकर सीमेंट के दामों में लाई गई इस कृत्रिम तेजी पर सरकार या अन्य राजनीतिक दलों की चुप्पी घातक है।
देश के मालिक मतदाताओं का ये हक है कि उन्हें पता चले कि उनके नौकर किस किस से रूपया ले रहे है। राजनीतिक दलों के चंदे का स्त्रोत जानना देष के मालिका का मौलिक अधिकार होना चाहिए। कोर्ट और संसद को कतई ये अधिकार नहीं है कि वे अपने काले चिट्ठे को कानून बनाकर छूपाए। ये राजनीतिक दलों ने किन किन से रूपया लिया और देष को कहां कहां नीलाम कर सकते है इसका अंदाजा मतदाताओं को होना चाहिए। बहरहाल आज भी पाकिस्तान में सीमेंट के दाम 200 रूपए प्रति बोरी है। सीमेंट उत्पादक मफ़िआओ ने दुष्मनी का लाभ उठाकर भारत में सीमेंट की कीमतें 400 रुपयों प्रति बोरी के आसपास ला दी है।