नई दिल्ली । स्कूली ‘वर्कबुक’ भी अब टेक्स्ट बुक तरह जीएसटी मुक्त होगी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 फीसदी जीएसटी वाले एक्सरसाइज बुक्स और टैक्स फ्री प्रिंटेड बुक्स के बीच तकनीकी अंतर को साफ करते हुए प्रकाशकों को राहत दी है। कोर्ट ने अथॉरिटी ऑफ एडवांस रूलिंग (एएआर) के एक फैसले को पलटते हुए किताब के भीतर प्रश्नों के उत्तर लिखने की खाली जगह और अन्य प्रैक्टिस मॉड्यूल की वजह से किसी किताब को 12फीसदी जीएसटी वाली एक्सरसाइज बुक्स की कैटेगरी में रखने को सही नहीं माना है। एक से 5वीं क्लास के बच्चों के लिए पाठ्यक्रम में शामिल सुलेख सरिता नामक हिंदी पुस्तक के प्रकाशक की ओर से दाखिल याचिका पर जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस रेखा पल्ली ने माना कि एक्सरसाइज बुक्स सिर्फ उन्हीं पुस्तकों को कहा जा सकता है, जिसमें दिए गए टेक्स्ट की हूबहू नकल करनी होती है और उनका स्वरूप एक तरह से नोटबुक्स का होता है। लेकिन जहां दिए गए प्रश्नों के अपनी ओर से उत्तर लिखने हों, जिनका टीचर्स की ओर से मूल्यांकन किया जा सके, ऐसी पुस्तकों को जीरो रेटेड प्रिंटेड बुक्स की कैटेगरी में ही रखा जाना चाहिए। जीएसटी एक्ट के तहत सभी तरह की प्रिंटेड बुक्स को टैक्स मुक्त रखा गया है, जबकि ग्राफ बुक्स, लैबोरेटरी बुक्स और नोटबुक्स को एक्सरसाइज बुक्स की कैटेगरी में डालते हुए 12 फीसदी जीएसटी तय किया गया है। प्रकाशक ने पहले एएआर में याचिका दाखिल कर सफाई मांगी थी, जिसने इस आधार पर पुस्तक को एक्सरसाइज बुक्स करार दिया था कि इसमें लिखने के लिए स्पेस है, जो एक तरह से वर्क प्रैक्टिस या एक्सरसाइज के लिए है।
हाईकोर्ट ने साफ किया कि एक्सरसाइज बुक्स वे हैं, जिनमें प्रिटेंड टेक्स्ट और खाली लाइनें होती हैं। वहां टेक्स्ट को मैन्युअली कॉपी करना होता है। ये आम तौर पर छोटे बच्चों को अक्षर ज्ञान या हैंडराइटिंग के अभ्यास के लिए छापी जाती हैं। लेकिन जहां दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखने हों या अपनी तरफ से कोई रचनात्मक टेक्स्ट लिखना हो, उन्हें वर्क बुक ही कहा जा सकता है, न कि टैक्स के नजरिए से एक्सरसाइज बुक्स। हालांकि कोर्ट के फैसले से प्रकाशकों को राहत मिली है, लेकिन जानकारों का कहना है कि इससे स्कूलों में किताबों की बिक्री और एक तरह के फैलते व्यापार को बल मिल सकता है। आम तौर पर स्कूल छोटी क्लासेज के लिए अपनी तरफ से किताबें देते हैं, जिनके लिए उनका प्रकाशकों के साथ हर साल टाईअप होता है। बहुत सी बुक्स या नोटबुक्स के टैक्सेबल होने से प्रकाशकों पर टैक्स अनुपालन का दबाव रहता है, जिससे वे मनमाने एमआरपी से बचते हैं।