सूरज की रश्मियों ने आज यह प्रण कर लिया है कि वो मुझे जला कर ही दम लोगी ।
“इस गगन को क्या हुआ ? “
“ये क्यों मोन है
“एक कतरा बादल का कहीं नजर नहीं आ रहा है।”
लगता है बादल भी मेरे खिलाफ कोई साजिश रच रहा है।
” ये नदिया भी सिकुड़ कर दूर चली गई है। सभी धरती के खिलाफ हो गये हैं।
“अब तो प्यास से मेरा गला भी सूखने लगा है।
धरती की व्याकुलता बढ़ती ही जा रही है।अब तो गला प्यास से चटखने भी लगा है , इसमें दरारे पड़ गई है ।
“इन ऊँची अट्टालिकाओं में रहनेवाले लोगों तुम्हे मेरा करुण क्रनंदन सुनाई नही दे है क्या ? “
एसी की शीतल वायु में गहन निद्रा में लीन हो । इस सूखे गले से तो अब आवाज ही नही निकल रही है।
” हे राम हे राम हे जानकी पुत्री कहाँ हो त्राहि माम त्राहि माम मुझे बचालो मेरा तन झुलसा जा रहा है। इस कठोर निर्दयी मानव जिसने मेरे आवरण को खरोंच कर अपनी अट्टालिकाएं, जहर उगलने वाली चिमनियाँ ,बना डाली है।
” डामर की काली नागिन सी सड़क भी पिघल कर मेरे नथुनों में भर रही है।
मेरे दौनो ओर की जमीन पर कभी पेड़ और खेत हुआ करते थे। अब बस जिधर देखो उधर टावर नजर आ रहे हैं ।
“हाय री किस्मत ? “
“अब तो पानी की कलकल चिड़ियों का कलरव मझे सुनाई नही दे रहा ।
मुझे लग रहा है , मैं मृग मरीचिका में फसती जा रही हूँ ।