हौसले  न  रहे 

जबसे  कुछ  उनसे  राफ्ते  न रहे मुझमें  जीने  के   हौसले  न  रहे। शहर का शहर…

यह मैंने नहीं जमाने ने कही है ।

बाज की नजर सदा चिड़िया के घोंसले पर रही है ।। बाढ़ तो आई थी पूरी…

ये कैसी दुनिया आई है ……

*गाँव बेचकर शहर खरीदा, कीमत बड़ी चुकाई है।*  *जीवन के उल्लास बेच के, खरीदी हमने तन्हाई…

बुद्ध का गृह त्याग

तेरा जाना जरूरी है , इसलिए तुम जाओ। लेकर दुआएं , अपने आंगन की तुम  जाओ।…

संजीव-नी।

मदारी और बंदर। एक मदारी लोगों के बीच जोर जोर से चिल्ला रहा था अपने बंदर…

ग़ज़ल

रिश्ते एैसे ढल गए कहते हू क्या है? खोटे सिक्के चल गए कहते तू क्या है?…

ज़रा एक रोज़ मिलकर देखूं तो..

धूप के इस लंबे से सफ़र में, अब तो थोड़ी “छांव” मिले कदमों को थोड़ा संभालूं,…

वो स्त्रियाँ

काम से लौटकर स्त्रियाँ         घर के काम पर लौटती हैं। मुन्ने मुनिया के बिखरे खिलौनों       को…

‘ गीत – गीता ‘

(श्रीमद्भगवद्गीता की काव्यात्मक प्रस्तुति) “अध्याय 2” मत मोह करो अर्जुन,नहीं ये धर्मश्रेष्ठ आचरित। मत पाओ नपुंसकता…

जेठ दुपहरी

काली घटाएँ घहरा रही है, श्वेत  श्याम  है  आसमां। स्मृतियों की सूनी कटिली, चुभ    रही…