जबसे कुछ उनसे राफ्ते न रहे मुझमें जीने के हौसले न रहे। शहर का शहर…
Category: काव्य ग़ज़ल
ये कैसी दुनिया आई है ……
*गाँव बेचकर शहर खरीदा, कीमत बड़ी चुकाई है।* *जीवन के उल्लास बेच के, खरीदी हमने तन्हाई…
ज़रा एक रोज़ मिलकर देखूं तो..
धूप के इस लंबे से सफ़र में, अब तो थोड़ी “छांव” मिले कदमों को थोड़ा संभालूं,…
‘ गीत – गीता ‘
(श्रीमद्भगवद्गीता की काव्यात्मक प्रस्तुति) “अध्याय 2” मत मोह करो अर्जुन,नहीं ये धर्मश्रेष्ठ आचरित। मत पाओ नपुंसकता…