तन्दुरुस्त जम्हूरियत की यह निशानी है कि हुकूमत करने वाले केन्द्रीय सरकार के वजीरेआजम या वजारत के मेम्बर हो या फिर सूबाई हुकूमत का वजीरेआला और वजीर हो अतवा नगर निकायों की सरकारों को जो हाँक रहे हो वह सब के सब दिल दिमाग जमीर से तन्दुरुस्त होना चाहिए तभी वह जिन्दा आदमी के हक में फैसला लेकर उसको अमली जामा पहनाने में कामयाब हो सकते हैं। जिससे अदना आला सभी बेफिक्र होकर अपनी अपनी जवाबदारी को तो पूरा करेंगे ही एक आजाद मुल्क के नागरिक की जिन्दगी भी जी सकते हैं। २०१४ में हजरते नरेन्द्र मोदी के केन्द्र की हुकूमत में भारी बहुमत से काबिज होने के बाद उनकी पार्टी भाजपा ने बड़े ही जोर-शोर से एक फैसला लिया था कि जिन्दा सरकारों की पहचान यही होती है कि उनका नेतृत्व करने वाले दिल दिमाग और जिस्म से इतने जईफ नहीं हो जाए कि जिससे उन्हें अवाम की बेहतरी के लिये जिन कार्यों को तुरन्त अमल में लाना है उनमें कोई कोताही हो इसीलिए जरूरी है कि जो लोग सियासत में सक्रिय है वह सत्तर साल पूरा होने के बाद सरकारों से तो रिटायर हो ही जाएं अगर वह पार्टी का नेतृत्व कर रहे हों तो उन्हें अपने पीछे लाइन में लगे हुए युवाओं के हवाले करके सिर्फ संरक्षक की भूमिका निबहानी चाहिए।
उसी फैसले को अमल में लाने के लिये जहाँ नरेन्द्र मोदी ने अपनी केबिनेट में बुजुर्ग लीडरों लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशीेेेे, यशवन्त सिन्हा जैसे दमदार नेताओं को नहीं लिया। वही मध्यप्रदेश में भी बाबूलाल गौर और सरताज सिंह को बाहर रखा इसी प्रकार और भी सूबाई हुकूमतों से ७० साल की उम्र पार कर चुके लीडरों को आराम करने की सलाह देकर घर बैठा दिया। हलांकि उत्त*लोग दिल दिमाग जमीर और जिस्म से मजबूत है बुढ़ापा उनके कहीं इर्दगिर्द भी नहीं है फिर भी जो फैसला हुआ उस पर अमल करने के लिये उनकी सियासी पारी का अन्त कर दिया गया। मगर वहाँ भी एक गड़बड़ की गई कि ८० साल की उम्र पार कर चुके कलराज मिश्रा को मोदी ने अपनी केबिनेट में बनाए रखा इससे उनके दिल दिमाग में छुपी हुई बेईमानी का लोगों को पता चल गया कि जब आडवाणी जोशी सिन्हा को सरकार सेदूर रखा फिर कलराज को क्यों बनाए रखा गया तभी से पार्टी के अन्दर के बुजुर्ग लीडरों में सुगबुगाहट है कि हमारे प्रति उस शख्श की दोहरी मानसिकता क्यों है। जिसने हमको बैसाखी बनाकर सियासत का मैदान फतह किया और अब हमेंही दरकिनार कर दिया।
जब जरूरतथी गुलिस्तां को तो खूँ हमने दिया।
बहार आने पर कहते हैं कि अब काम नहीं।।
लोग भूले नहीं है कि जब केन्द्र में बाबा अटल की सरकार थी, लालकृष्ण आडवाणी नायब वजीरेआजम और गृहवजीर थे तब नरेन्द्र मोदी गुजरात के वजीरेआला हुआ करते थे। उस वत्त* गुजरात में जो साम्प्रदायिक दंगा हुआ था जिसमें वहाँ की सरकार में प्रायोजित अन्दाज में अल्पसंख्यक समुदाय के नागरिकों के मकान दुकान कलकारखाने ढहाने का काम किया था। तब बाबा अटल ने आडवाणी को कहा था कि नरेन्द्र मोदी ने आम नागरिक की सुरक्षा करने के राजधर्म का पालन नहीं किया है अत: इन्हें हुकूमत से राजीनामा देने को कहो उस वक्त आडवाणी मोदी को अपना खास शिष्य समझते थे अत: उन्होंने नाना प्रकार के बहाने बनाकर उस वक्त मोदीको बचा लिया था वगरना जब बाँस ही नहीं रहता तो बाँसुरी कहाँ से बनती और जब बाँसुरी ही नहीं बनती तो रोम के बादशाह नीरो की तरह मोदी भी अपने ही बुजुर्गों को ठिकाने लगाकर चैन की बाँसुरी नहीं बजाते नजर आते। कहावत है कि जब रोम जल रहा था तब वहाँ का सनकी बादशाह प्रसन्नतावश बांसूरी की मधुर तान यह कहते हुए छेड़े हुए था कि वाह क्या उजाला हो रहा है।
आज जब पूरा मुल्क तबाही की कगार पर खड़ा है। रुपये की कीमत डालर के मुकाबले रिकार्डतोड़ अन्दाज में घट गई है। आम जनता मंहगाई बेरोजगारी भ्रष्टाचार रिश्वतखोरी अराजकता के पहाड़ के नीचे दबी हुई कराह रही है तब मोदी और उसके नामुराद चेले अमित शाह अपनी पीठ अपने ही हाथों से थपथपाकर वाह-वाह कह रहे हैं। बुजुर्ग लीडरों के मामले में कह रहे हैं कि उनकी कार्यक्षमता में भारी कमी आ गई थी अत: उन्हें आराम देना आवश्यक था इसीलिए उनको आराम दिया गया है। मगर गोवा के चीफ मिनिस्टर जो इतने अधिक बीमार हैं कि उन्हें आई.सी.यू. में रखना पड़ रहा है फिर भी उन्हें पद पर बनाए रखने की क्या तुक है कौन सा लाजिक है यह बात हजरते मोदी या फिर उनके खास खैरख्वाह अमित शाह ही बता सकते हैं। कायदा तो यही था कि जब मनोहर पार्रिकर दिल दिमाग जमीर और जिस्म से लाचार हैं एक तन्दुरुस्त सरकार चलाने की उनमें कूबत नहीं है तो उन्हें सरकारी झंझटों से आजाद करके सिर्फ और सिर्फ उनके इलाज की ओर ध्यान देना चाहिए। एक और कारनामा शाह ने कांग्रेस के दो विधायकों को पटाकर उनसे इस्तीफा दिलवाकर उन्हें भाजपा में शामिल कर लिया है। जिससे दोनों पार्टियों के विधायकों की संख्या १४-१४ हो गई है।
जब पार्रिकर किसी भी किस्म का कोई भी फैसला लेने में नाकाम है तब वहाँ भी सरकार कौन चला रहा है इसका मतलब तो यही है कि गोवा की सरकार अब अमित शाह या मोदी का कोई गुर्गा हाँक रहा होगा जो सूबे के हित में कतई नहीं है।
अपने में समेट जग कैसे व्यत्ति* विकास करेगा।
यह एकांत स्वार्थ भीषण है सबका नाश करेगा।।
फैसला तो काबिले तारीफ कहा जाएगा कि तन्दुरुस्त जम्हूरियत के लिये सरकारों को चलाने वालों को चुस्त दुरुस्त और तन्दुरुस्त होना निहायत जरूरी है। मगर अपने रकीबों को निपटाने के लिये कोई नियम बनाना और अपने प्रियपात्रों को उससे मुक्त रखना बेईमानी है धोखा है तंगदिली है दोगलापन है उससे भारत महान का नेतृत्व करने वालों को बचना चाहिए।
बेईमानी की है तो फिर रहबर कहाँ तुम गद्दार हो।
यह तो सबित हो गया धनपशुओं के तुम यार हो।।
कबीरा मुल्क की हुकूमत चला रहे लोगों की तंगदिली से शर्मसार है।ै