चिंताराम की चिंता

चिंताराम कुछ ज्यादा ही चिंता में डूबे रहते हैं। उनसे आपकी भेंट हो जाएँगी तो आप भी चिंता में पड़ जाएँगे।हजरत घर-परिवार की चिंता करते-करते, सारे जहान की चिंता, देश की चिंता और समाज की चिंता,बस चिंता ही करते रहते हैं,सच कहिए तो चिंता के सागर में ही डुबकियाँ लगाते रहते हैं।

एक दिन बीच सड़क पर मुझे रोकते हुए चिंताराम ने  कहा-“आप  कुछ कीजिए,आप बुद्धि जीवी हैं। आप लोगों पर सबकी नज़रें टिकी हुई हैं।आम आदमी  बेहाल  हैं। मंहगाई ने हमारा जीना मुहाल कर दिया है। पेट्रोल का दाम आसमान छू रहा है। मोटर साइकिल घर से निकालने से पहले सौ बार सोचना पड़ता है..।’

मैंने कहा-“भाई! पैदल चलिए। कहीं जल्दी में  निकलना पड़े, तो मोटर साइकिल का मोटर घर पर ही छोड़ दीजिए,मज़े से साइकिल  निकाल लीजिए। फटफटिया पर ही चलना कौन जरूरी है।साइकिल चलाएँगे तो आप सेहतमंद भी रहेंगे और प्रदूषण की मार से धरती बची भी रहेगी।””यह तो ठीक है मगर आपने कभी सोचा है, यदि लोग मोटर साइकिल, कार वगरैह पर चढ़ना बंद कर देंगे तो मोटर गैराजवाले लोगों की दाल- रोटी कैसे चलेगी ?” चिंताराम ने अपनी चिंता प्रकट की।

मैंने कहा-“अरे भाई! सब साइकिल मरम्मत का काम करने लगेंगे।एक काम बंद होता है तो उससे भी बढ़िया दूजा काम निकल आता है। बस हुनर चाहिए।काम करनेवालों के लिए काम की कमी नहीं। निकम्मे ही बहाने खोजते हैं,कहते हैं काम नहीं है।और कर्मठ काम करते-करते भले ही शहीद हो जाएँ, मगर काम करना नहीं छोड़ते हैं। “

चिंताराम ने  ऊपर से नीचे तक मुझे देखा। और उन्होंने बेरोजगारी पर मेरे विचार माँगे।

मैंने कहा-“बेराजगारी के नाम पर हल्ला करने वाले हमारे देश को बदनाम कर रहे हैं। सोशल   मीडिया में रोजगार ही रोजगार है।फेसबुक, इंस्टाग्राम और वाट्सएप पर उंगलियाँ नचाइए और मस्त रहिए।”

उन्होंने मुझे से कहा -“कोरोना से देश को बड़ा नुकसान हुआ है  न ? “

मैंने कहा-” यह सब कहने का है, आपने पढ़ा ही होगा। न्यूटन महोदय कह गए हैं, प्रत्येक क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है। कोरोना ने जितना नुकसान पहुँचाया है देश का, उतना ही फायदा भी।”

उन्होंने पूछा -” फायदा एक भी हो तो गिनाएँगे,मैं मान लूँगा।”

मैंने  कहा-“शौके दीदार है तो नज़र पैदा कर। ऑनलाइन वाले चल निकलें। जहाँ देखो सबकुछ ऑनलाइन होने लगा। मुझे भी काव्य-गोष्ठियों में ऑन लाइन कविता पाठ करने का सौभाग्य मिला। ऑन लाइन में ही मेरा मान-सम्मान भी आयोजकों ने कर दिया। मास्टर साहब भी ऑन लाइन क्लास लेने लेगे हैं और बच्चे  भी ऑन लाइन पढ़ाई करना सीख चुके हैं।वर्क फॉर्म होम चल निकला। ऑन लाइन प्रेम और शादियाँ भी हो  रही हैं। और क्या-क्या बताएँ आपको ? आप स्वयं गुगल बाबा से कोरोना के फायदे पूछ लीजिए।आप पढ़कर दंग रह जाएँगे। “

 मैंने देखा कि चिंताराम की चिंताएँ  कम नहीं हो  रही हैं। उन्होंने कहा-“किसानों की चिंता होती है।बेचारे ..।” और चिंताराम के मुँह खुले के खुले ही रह गए। मैंने कहा-“किसानों की चिंता आज तक किसी ने नहीं की है,तो फिर आप-हम उनकी चिंता में अपना खून क्यों जलाएँ ? जिसका कोई नहीं होता है,उसका ऊपरवाला होता है। अरे भाई!चिंता छोड़िए मस्ती में रहिए।जो चार का हाल होगा वही हमारा होगा। देश में अनाज की कमी होगी तो विदेश से आ जाएगा।विदेश गए बिना आप घर बैठे विदेशी जायका का मज़ा ले पाएँगे। यह कम बड़ी बात है?”

चिंताराम ने गहरी साँसें लेते हुए कहा-“वह तो ठीक है,मगर हमें तो चिंता करने की आदत पड़ गई है। जैसे आप लेखक लोग कुछ-न-कुछ लिखते- पढ़ते रहते हैं,और लिखकर पढ़कर खुश होते हैं।उसी तरह मुझे चिंता करने से खुशी मिलती है।”मैंने कहा-“ओह! आपको चिंता  में भी खुशी मिलती है।यह बहुत बड़ी बात है।फिर आप चिंता करते रहिए और खुश होते रहिए और अपने आपको ,घर -परिवार को और देश को खुशहाल बनाते रहिए।”

 मैंने चिंताराम और उनकी शाश्वत चिंता को सादर नमन किया और अपना रास्ता पकड़ लिया। 

नवीन कुमार ‘नवेंदु’ 

बानो,सिमडेगा,झारखंड, 

  व्यंग्यकार