कविता सदैव ही
भयमुक्त रही
समय के उतार-चढ़ावों में ,
कितनीं भी..
कैसी भी..
सभ्यताएं प्रचलन में रहीं ,
कैसे भी हालात..
कैसे भी मौसम..
कैसी भी विचारधाराएं..
उसने कायम रखा
अपना संपूर्ण वर्चस्व ,
नोटबंदी के समय भी
वह दूर ही रही
किसी भी किल्लत से ,
..और खनकती रही
जेब में बची चवन्नी-अट्ठन्नी की तरह
पूरा का पूरा ख़र्चे जाने के बाद भी !!
नमिता गुप्ता “मनसी”
उत्तर प्रदेश , मेरठ